Indira Sagar Pariyojna Ghotala: अधूरी नहर को पूरी बताकर कंपनी को कर दिया भुगतान

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Indira Sagar Pariyojna Ghotala: पूर्व विधायक किशोर समरीते ने की थी शिकायत, कार्यपालन यंत्री समेत आधा दर्जन अफसरों को बनाया गया आरोपी

Indira Sagar Pariyojna Ghotala
भोपाल स्थित आर्थिक प्रकोष्ठ विंग मुख्यालय

भोपाल। मध्य प्रदेश और गुजरात की सीमा में बने इंदिरा सागर परियोजना (Indira Sagar Pariyojna Ghotala) में हुए एक घोटाले को लेकर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने मुकदमा दर्ज किया है। यह एफआईआर र्इ्ओडब्ल्यू की इंदौर इकाई (Indore EOW News) ने दर्ज की है। यह इकाई प्रकरण में 2017 से जांच कर रही थी। इस मामले की शिकायत पूर्व विधायक किशोर समरीते (Kishore Samirite) ने की थी। जांच के बाद नहर बनाने वाली कंपनी और परियोजना से जुड़े पांच अफसरों के खिलाफ मुकदमा (MP Indira Sagar Project Scam) दर्ज किया है। पूर्व विधायक का दावा है कि यह घोटाला एक करोड़ रुपए से अधिक का है।

दस्तावेज होने के बावजूद छुपाकर रखा

ईओडब्ल्यू (Bhopal EOW Hindi News) के अनुसार इस मामले में धारा 420/467/468/471/474/477/120बी/13 डी (जालसाजी, दस्तावेजों की कूटरचना, मिथ्या दस्तावेज निर्माण, साजिश, जानबूझकर दस्तावेज छुपाना और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इस मामले में आरोपी तत्कालीन कार्यपालन यंत्री एनके तिवारी (NK Tiwari), कार्यपालन यंत्री यूके पटसारिया (UK Patsariya), सहायक यंत्री एसके खजरे (SK Khajare), तत्कालीन सहायक यंत्री एचएन मलगाया (HN Malgaya), तत्कालीन उप यंत्री जेएन पुराणिक (JN Puranik) और डायरेक्टर करण डेव्हल्पमेंट सर्विसेस प्रायवे​ट लिमिटेड को आरोपी बनाया गया है। इस मामले की शिकायत अगस्त, 2017 में की गई थी।

प्रोजेक्ट एक्सटेंशन में गड़बड़ी

Indira Sagar Pariyojna Ghotala
इंदिरा सागर डैम— फाइल फोटो

ईओडब्ल्यू ने बताया कि यह घोटाला इंदिरा सागर परियोजना (Indira Sagar Pariyojna Scam) के खरगोन कार्यालय में अंजाम दिया गया। कंपनी को नहर निर्माण से संबंधित ठेका मिला था। कंपनी को अपना प्रोजेक्ट 30 महीने में पूरा करना था। लेकिन, उसको बढ़ाकर 43 महीने किया गया। इसके अलावा अक्टूबर, 2010 को प्रोजेक्ट अधूरा था। लेकिन, मूल दस्तावेजों को छुपाकर उसको पूरा होना बताया गया। कंपनी से रिकवरी निकल रही थी। उसको भी छुपाकर परियोजना से जुड़े अफसरों ने सिक्योरिटी मनी रिलीज कर दी। इसके अलावा रॉयल्टी जमा होने के प्रमाण पत्र में भी गड़बड़ियां पाई गई।

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ऐसे पकड़ में आई गड़बड़ी

ईओडब्ल्यू ने इस एफआईआर के लिए करीब दो लाख दस्तावेजों का अध्ययन किया। जिसके बाद कई तकनीकी बिंदुओं पर उसको पकड़ा। इसमें से एक नोटशीट सहायक यंत्री जेपी लडिया (JP Ladiya) की थी। लडिया ने नोटशीट जनवरी, 2011 में लिखी थी। जिसमें बताया गया था कि प्रोजेक्ट अभी अधूरा है। इसके बावजूद कार्यपालन यंत्री यूके पटसारिया ने अक्टूबर, 2010 में प्रोजेक्ट को कागज में पूरा बता दिया। इसी तरह यूके पटसारिया की एक नोटशीट जब्त हुई है। यह नोटशीट मार्च, 2013 में लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि काम पूरा नहीं हुआ है। लेकिन, दो महीने बाद ही पटसारिया ने रॉयल्टी जमा नहीं का प्रमाण पत्र जारी कर दिया।

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