World Terrorism Effect: तालिबानी के लिए महंगा साबित हो रहा आईएसआई 

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World Terrorism Effect: कानून-व्यवस्था को सुधारने में नाकाम तालिबानी लडाके, आईएसआई के बिगड़े समीकरण तो हक्कानी नेटवर्क पर रखा हाथ, भारत में जम्मू—कश्मीर के रास्ते हक्कानी नेटवर्क की एंट्री

World Terrorism Effect
अफगानिस्तान सरकार के प्रमुख चेहरे में से एक।

काबुल। अफगानिस्तान में अशरफ गनी से कुर्सी छीनकर बनी तालिबान की नई सरकार दक्षिण एशिया के लिए नया सिरदर्द बन रही है। उसके निशाने पर खासतौर से भारत है। वह भी तब जब भारत उसको गेहूं की मदद दे रहा है। दरअसल, वहां सरकार जाने के बाद अनाज का संकट है। अफगानिस्तान (World Terrorism Effect) में तालिबान और हक्कानी गुट मिलकर सरकार चला रहे हैं। तालिबान पहले पाकिस्तान का सरपरस्त था। उसको पाकिस्तान के आईएसआई से भरपूर मदद मिलती थी। लेकिन, तालिबानी गुट और आईएसआई के बीच कुछ समय से मनमुटाव की खबरें आ रही है। जिस कारण आईएसआई ने वहां दूसरे नंबर पर मौजूद हक्कानी नेटवर्क पर हाथ रख दिया है। यह नया समीकरण भारत के लिए चुनौती भरा हो रहा है। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ इस समीकरण के पीछे वास्तविक वजहों का पता लगा रहे हैं।

इसलिए हो रहे हैं बम धमाके

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हक्कानी नेटवर्क और अफगानिस्तान में प्रतिबंधित संगठन आईएसआईएस खुरासान गुट के बीच नजदीकियां बढ़ने की खबरें हैं। इन्हीं नजदीकियों की वजह से तालिबानी लड़ाके कमजोर साबित हो रहे हैं। क्योंकि खुरासान गुट पूर्वी अफगान के अलावा पाकिस्तान से सटे कुछ इलाकों में दखल रखता है। इसलिए वहां सिलसिलेवार बम धमाके कर रहे हैं। ताजा हमला 29 अप्रैल को काबुल की एक मस्जिद में हुआ। ये मस्जिद सुन्नी समुदाय के तहत आने वाले अल्पसंख्यक समूह जिकरीस की है। इस हमले में 50 से अधिक लोग मारे गए। उधर पिछले सप्ताह मजार-ए-शरीफ में शिया समुदाय के एक वाहन पर हमला हुआ था। इसमें नौ लोग मारे गए। शिया वाहन पर हमला तालिबान के यह दावा करने के कुछ ही देर बात हुआ कि आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के के एक आतंकवादी को गिरफ्तार किया गया है। उसको मस्जिद हमले का मास्टरमांइड बताया गया था। उस हमले में 31 लोग मारे गए थे। हमलों ने तालिबान नेतृत्व के इस दावे को गलत साबित कर दिया है कि आईएसआईएस-के का देश में खात्मा कर दिया गया है। साथ ही देश में सभी अल्पसंख्यक समुदायों को पूरी सुरक्षा देने उसका वादा भी खोखला साबित हुआ है। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि तालिबान शासन में अंदरूनी मतभेद के कारण आईएसआएस-के आज भी एक मजबूत ताकत बना है। हक्कानी गुट के इस आतंकवादी गुट से पुराने रिश्ते हैं। हक्कानी आईएसआईएस-के के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को इच्छुक नहीं रहे हैं। जबकि तालिबान शासन में गृह मंत्रालय हक्कानी गुट के पास है। ऐसे बहुत से लड़ाके आईएसआईएस-के में शामिल हो गए हैं, जिन्हें अमेरिकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने प्रशिक्षित किया था।

जम्मू हमले के बाद गहराया शक

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अफगानिस्तान सरकार के प्रमुख चेहरे में से दूसरा बड़ा चेहरा

जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में थी, तब इन लोगों को तालिबान से लडऩे के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इन लोगों के शामिल होने से आईएसआईएस-के की ताकत बढ़ी है। अमेरिकी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज ऑफ वॉर की रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में ऐसे कई गुट हैं, जिनकी राय में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है। इसलिए ये गुट अपने हमलों को आजादी की लड़ाई बताते हैं। हाल में पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी (EX President Ashraf Gani) के दौर में अफगान सुरक्षा बल से जुड़े रहे लेफ्टिनेंट जनरल समी सादात भी इन गुटों से जाकर मिल गए। इन घटनाओं से बढ़ी चुनौती से तालिबान परिचित है। इसीलिए उसने हाल में उत्तरी अफगानिस्तान में अपने बलों की तैयारी बढ़ा दी है। इसे देखते हुए कई विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले महीनों में अफगानिस्तान में गृह युद्ध का माहौल बनेगा। उससे आर्थिक संकट के और गहराने की आशंका है। तालिबान प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बरादर(Mullah Abdul Gani Baradar)  है जबकि हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी(Sirajuddin Haqqani)  है। इन दोनों के बीच सरकार बनने से पहले ही अनबन शुरु हो गई थी। जिसकी भनक आईएसआई को थी। जम्मू के सुंजुंवा में 22 अप्रैल को सेना ने एक मुठभेड़ की थी। जिसमें दो पश्तो भाषा के जानकार आतंकी आरिफ अहमद हजार (Arif Ahemad Hazaar) और अबू हुजैफा(Abu Huzefa)  उर्फ हक्कानी ढ़ेर हुए थे। पुलिस ने शक जताया था कि यह आईएसआई की मदद से भारत में दाखिल होेने जा रहे थे।

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