MP Cop Gossip: अंगद के नाम पर अफसरों ने अभी भी अपने चहेतों को नहीं हटाया, डीएसपी बनने के बावजूद थाना प्रभारी, पूल पार्टी के किस्से पीएचक्यू गलियारों में पहुंचे
सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग बहुत बड़ा होता है। उसमें भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। ऐसे ही बातों का हमारा साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप है (MP Cop Gossip) । इनमें वे बातें होती है जो मीडिया में आने से रह गई। इस बार कुछ चुटीले किस्से।
दूसरी बार भी आदेश निकालना पड़ा
पिछले दिनों प्रशासन शाखा से एक ही थानों में लंबे समय से जमे फिर यहां—वहां होते हुए फिर उसी थानों में आकर कुर्सी संभालने वाले कर्मचारियों पर पुलिस मुख्यालय ने जमकर चाबुक चलाया। जिस कारण पूरे प्रदेश में करीब दस हजार से अधिक कर्मचारी उसकी जद में आ गए। इसमें कई कर्मचारी ऐसे थे जिनके राजनीतिक आकाओ से भी बनती थी। उन्हें भी आदेश ने अपनी चपेट में ले लिया। भोपाल शहर में डीसीपी मुख्यालय ने इस संबंध में एक पखवाड़े के भीतर में दो बार आदेश निकाला। दरअसल, कुछ कर्मचारियों को बख्शे जाने की जानकारियां सोशल मीडिया में जमकर वायरल हुई। आदेश के बाद दर्जनों कर्मचारियों ने पुलिस कमिश्नरेट कार्यालय पहुंचकर थानों में तैनात सारे अंगदों की जानकारी देकर उन्हें भी इधर—उधर करने के लिए भी बोला जाने लगा।
इसलिए बन गई है अब समस्या
शहर के कई थानों में आदेश पर अमल शुरु हो गया है। इतना ही नहीं कई जोन के डीसीपी ने तो थाना प्रभारी से अब पुराना कर्मचारी नहीं होने का भी सर्टिफिकेट मांग लिया। इसके अलावा पुलिस कंट्रोल रुम से भी समय बताकर थाने से रवानगी देने के आदेश दे दिए गए। इस कारण थानों में पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई। थानों में मुंशी, एफआईआर दर्ज करने वाले कर्मचारी से लेकर चीता—चार्ली वाले सारे काम ठप्प हो गए। अफसरों ने नाम न छापने की शर्त में बतायाा कि कई कर्मचारियों को आन लाइन एफआईआर दर्ज करना नहीं आती। उसी तरह बीट में तैनात एक्सपर्ट के कारण जो काम सरलता से होते थे उनमें बाधाएं आने लगी हैं। हालांकि इस कवायद से सूचना संकलन में जरुर उलटफेर देखने को मिल रहा है।
इन्हें बचा ले गए अफसर
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अंगद केवल थानों में ही नहीं हैं। बल्कि डीसीपी, एडीसीपी से लेकर एसीपी कार्यालय में भी तैनात हैं। इन्हें हटाने को लेकर भी प्रशासन शाखा से आदेश जारी था। लेकिन, इसमें मैदानी अफसर (MP Cop Gossip) मौन हो गए। इसके अलावा भोपाल शहर में ही पुलिस लाइन, ट्रैफिक, कैंटीन, स्कूल, पेट्रोल पंप, एमटी शाखा समेत दूसरी विंग में भी अंगद तैनात हैं। लेकिन, अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी पट्ठा परंपरा के मकड़जाल में फंसे हैं। जिस कारण उनकी बीट बदलना तो दूर उन्हें हटाने की चर्चा भी नहीं की जा रही। इनमें वाहन चालकों के भी नाम हैं जो एक ही अधिकारी के पास हैं और वे जहां—जहां गए वहां—वहां उन्हें लेकर पहुंचे।
प्रदेश में ज्यादती का एक सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है। जिस दिन यह सोशल मीडिया के जरिए क्राइम रिपोर्टरों में बंटा उतनी ही तेजी से उसको हल्का बनाने की योजना पर काम शुरु कर दिया गया। यदि इस मामले की बारीकी से पड़ताल हुई तो कई सफेदपोश जिन्हें बचा लिया गया वे बेनकाब हो जाएंगे। बहरहाल ऐसा करने वाले एक निरीक्षक हैं जो अपनी होशियारी के चलते महकमे को पहले भी संकट में डाल चुके हैं। अब इस मामले के किस्से पीएचक्यू के गलियारे में पहुंच चुके हैं। दरअसल, पूल पार्टी जिस फार्म हाउस में हुई थी वहां सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं। लेकिन, घटनाक्रम को जन्मदिन का बताकर मीडिया के सामने परोस दिया गया। उस पार्टी में जो भी वहां मौजूद था उसकी सांसे उखड़ रही हैं। कहीं उनका नाम लीक न हो जाए। वहीं ऐसा न करने के लिए भी पूरी तरह से काम भी किया जा रहा है। बहरहाल इसकी रिकॉर्डिंग जब तक तहखाने में हैं तब तक सफेदफोश सेफ हैं।
राजधानी से सटे डीएसपी का रोना
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शहर में लंबे समय तक कई थानों में सेवाएं दे चुके एक निरीक्षक अब डीएसपी हो गए हैं। उन्हें यह प्रमोशन मिले काफी महीना बीत चुका है। इसके बावजूद वे थाना चलाने को मजबूर हैं। क्योंकि वे निरीक्षक महोदय के जितने अच्छे पीआर विभाग में हैं उतने ही मधुर राजनीतिक गलियारों में भी हैं। वे उस जगह जाना चाहते हैं जहां उन्होंने काफी वक्त बिताया है। इसके लिए वे युद्ध स्तर पर प्रयास भी कर रहे हैं। अब देखना यह है कि उनकी मुराद कब तक पूरी होती है जिसके बाद वे ‘चैन’ की सांस ले सकें।
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