Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1: बैंक ऑफ महाराष्ट्र का लोन घोटाला, ईओडब्ल्यू का बचने वाला ‘प्रेम’

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Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1: मैनेजर ने एक महीने में रेवड़ी की तरह एक ही किस्त में बांट दी तीन करोड़ रूपए की राशि, भाई—बहन के बीच मालिकाना हक के विवादित भवन को गिरवी रखने का योजनाबद्ध तरीके से खेला गया खेल

Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1
भोपाल में बैंक ऑफ महराष्ट्र का आंचलिक कार्यालय भवन- फाइल फोटो

भोपाल। मध्यप्रदेश का वित्तीय लेन—देन या कारोबार में जब भी नाम आता है तो उससे पहले घोटाले सामने आने लगते हैं। व्यापमं घोटाला, ई—टेंडर घोटाला, कंम्यूटर घोटाला और अब लोन घोटाला। आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन, जिस तरीके से तीन करोड़ रुपए का लोन बांटा गया वह काफी हेरान कर देना वाला है। घटना भोपाल शहर के अरेरा कॉलोनी स्थित बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1) ब्रांच की है। इस बैंक ने अरेरा कॉलोनी की एक विवादित भवन को कागजों में गिरवी रखकर तीन करोड़ रुपए का लोन बांट दिया। यह सबकुछ एक महीने के भीतर किया गया। इतनी भारी रकम को जारी करने से पहले जिन दस्तावेजों की पड़ताल होनी थी वह सतही की गई। अब इस फर्जीवाड़े में भोपाल के ईओडब्ल्यू थाने में प्रकरण दर्ज हुआ है। हालांकि इस प्रकरण में भी कई रसूखदारों को बचाया (MP Bank Scam) गया है। जबकि बैंक आफ महाराष्ट्र से उन रसूखदारों ने कई बड़े लोन पहले से ले रखे हैं।

कब दर्ज हुआ मुकदमा

इस मामले की शिकायत ई—2/28 अरेरा कॉलोनी निवासी पारुल अग्रवाल पति रूपेश अग्रवाल उम्र 52 साल ने 25 फरवरी, 2021 को ईओडब्ल्यू (EOW Bank Loan Fraud) में शिकायत की थी। इस शिकायत की जांच के बाद भोपाल ईओडब्ल्यू थाने में 4 फरवरी, 2022 को 17/22 धारा 420/120—बी/7/13(1)ए/13(2)जालसाजी, साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज किया। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने आरोपी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद (Ghaziabad) स्थित कवि नगर निवासी मलिका गर्ग, उनके पति अंकुर गर्ग (Ankur Garg) और बैंक आफ महाराष्ट्र के तत्कालीन बैंक मैनेजर सहज पाठक (Sahaj Pathak) को आरोपी बनाया। एक साल चली लंबी जांच के बाद ईओडब्ल्यू ने यह फैसला लिया था। जिसमें कई तरह की शंकाए जन्म ले रही है। आरोप है कि आरोपियों ने बैंक के जरिए केश क्रेडिट लिमिट बढ़ाते हुए तीन करोड़ रूपए का लोन बैंक से लिया था। ईओडब्ल्यू का दावा है कि इसके लिए आवेदन अंकुर गर्ग और मलिका गर्ग ने एएम ट्रेडलिंक्स फर्म (AM Tradelinks) के नाम पर किया था। लोन लेने के लिए आरोपियों ने जून, 2013 में ई—2/28 अरेरा कॉलोनी मकान में मालिकाना हक दिखाकर आवेदन किया था। जबकि पीड़िता पारूल अग्रवाल (Parul Agrawal) का दावा है कि उक्त संपत्ति पर मालिकाना हक उसका और उसके पति का है। इसके बावजूद बैंक ने तमाम नियमों की अवहेलना करके लोन मं​जूर किया।

कोर्ट में जिस संपत्ति का विवाद उसको बंधक बनाया

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आर्थिक प्रकोष्ठ विंग मुख्यालय भोपाल— फाइल फोटो

पीड़ित पारूल अग्रवाल ने ईओडब्ल्यू को बताया कि उसकी संपत्ति पर वह 1993 से रह रही है। जिसके सभी प्रॉपर्टी टैक्स के अलावा अन्य सरकारी करों का भुगतान उसने किया। संपत्ति पर मालिकाना हक को लेकर मलिका गर्ग के साथ पारूल अग्रवाल के बीच दीवानी प्रकरण 2012 से भोपाल जिला अदालत में भी लंबित है। लोन लेने के लिए मलिका गर्ग (Malika Garg) और उसके पति अंकुर गर्ग ने यह बातें भी बैंक से छुपाई। जबकि बैंक मैनेजर सहज पाठक ने भौतिक रिपोर्ट का सही तरीके से सत्यापन भी नहीं किया। यदि ऐसा किया होता तो दीवानी प्रकरण और मकान पर रहने वाले पारूल अग्रवाल और उसके पति रूपेश अग्रवाल (Rupesh Agrawal) के संपत्ति कब्जे में होने की जानकारी सार्वजनिक हो जाती। सहज पाठक ने बैंक आफ महाराष्ट्र प्रबंधन को भी इन बातों को जानने का अवसर नहीं दिया। जबकि इस संपत्ति के विवाद और मालिकाना हक को लेकर चल रहे न्यायालय की जानकारी पारूल अग्रवाल 2012 में ही समाचार पत्रों के जरिए सार्वजनिक कर चुकी थी। इसके बावजूद सहज पाठक ने ई—2/28 की संपत्ति को कोलेट्रल सिक्योरिटी के रुप में उसे मंजूर करते हुए तीन ​करोड़ रुपए का लोन बांट दिया।

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एक महीने में तीन करोड़ रूपए का लोन मंजूर

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भोपाल में अरेरा हिल्स स्थित बैंक आफॅ महाराष्ट्र आंचालिक कार्यालय का भवन- फाइल फोटो

पारूल अग्रवाल और मलिका गर्ग रिश्तेदार भी है। मलिका गर्ग रिश्ते में उसकी ननद हैं। पीड़ित परिवार का आरोप है कि पारूल अग्रवाल के ननदोई अंकुर अग्रवाल कई बैंकों से कर्ज लेकर कई अन्य संपत्तियों को वे पहले ही एनपीए करा चुके थे। इस कारण उन्होंने भोपाल में स्थित संपत्ति (Bhopal Property Dispute) पर विवाद पैदा करने के लिए यह साजिश रची। इस पूरे मामले में ईओडब्ल्यू ने प्रेम चावला (Prem Chavla) के नाम पर चुप्पी साध ली। दरअसल, मलिका गर्ग और अंकुर गर्ग ने तीन करोड़ रुपए का लोन लेने के लिए आर्गेनिक्स भोपाल जिसकी संचालक सुधेश चावला (Sudhesh Chavla) की ऑडिट रिपोर्ट, आनंद कोटिंग्स (Anand Coatings) की सुपर डिस्ट्रीब्यूटरशिप का पत्र और ई—2/28 के पते पर जारी गुमाश्ता के दस्तावेज लगाए थे। जबकि हबीबगंज तहसीलदार गुमाश्ता को गलत जारी बताकर उसके अस्तित्व को पहले ही संदेह में डाल चुके थे। बैंक मैनेजर 8 जून, 2013 को अपनी रिपोर्ट में संपत्ति के निरीक्षण का दावा किया। जिसके बाद 10 जून को बैंक मैनेजर ने पैनल रिपोर्ट भी हासिल कर ली। फिर संपत्ति का मूल्यांकान कराया गया जिसकी रिपोर्ट 15 जून को बैंक को मिल गई। यह सभी रिपोर्ट बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1) के आंचलिक शाखा को भेजी गई। जिसकी समीक्षा क्रेडिट मैनेजर मयंक तापडिया (Credit Manager Mayank Tapadia) ने की। इसकी रिपोर्ट 12 जुलाई, 2013 को तापडिया ने बनाई। उन्होंने शर्तों के साथ एएम ट्रेडलिंक्स कंपनी को लोन मंजूर करने का आदेश दे दिया।

मां के जरिए दानपत्र की संपत्ति

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भोपाल स्थित आर्थिक प्रकोष्ठ विंग मुख्यालय— फाइल फोटो

ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला कि मलिका गर्ग के विवाह के बाद उसकी मां संतोष अग्रवाल (Santosh Agrawal) ने बेटी को ई—2/28 का भवन मार्च, 2011 में पंजीकृत दानपत्र के जरिए दिया। लेकिन, यह सबकुछ कवायद गोपनीय तरीके से किया गया। जबकि उस मकान में संतोष अग्रवाल का बेटा रूपेश अग्रवाल भी पत्नी पारूल अग्रवाल के साथ रहता था। उससे ऐसा करने के लिए मां ने कोई सहमति नहीं ली। जिसका विवाद न्यायालय में विचाराधीन हैं। इसकी वजह भी है क्योंकि मकान उपहार में लेने के एक साल बाद ही मलिका गर्ग ने अपने भाई रूपेश अग्रवाल, भाभी पारुल अग्रवाल और भतीेजे को मकान खाली करने का नोटिस थमा दिया था। इसी विवाद के चलते दोनों पक्षों ने नवंबर, 2012 में संपत्ति पर विवाद को लेकर जाहिर सूचना प्रकाशित कराई थी। इसके बावजूद बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने उसको विवादित संपत्ति न मानते हुए तीन करोड़ रुपए का लोन मंजूर कर दिया।

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इस व्यक्ति को बचा ले गई ईओडब्ल्यू

ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला कि मलिका गर्ग ने पेंट्स और थिनर का व्यापार प्रेम चावला (Prem Chavla News) की कंपनी से किया। हालांकि प्रेम चावला की मलिका गर्ग की कंपनी में कोई हिस्सेदारी होने से संबंधित दस्तावेज नहीं मिले। लेकिन, लोन लेते वक्त प्रेम चावला की कंपनी के सुपर डिस्ट्रीब्यूटशिप के दस्तावेज लगाए गए थे। प्रेम चावला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। प्रेम चावला अलग—अलग पांच फर्म के मालिक है। इनके भोपाल शहर में पेंट्स और थिनर बनाने के दो कारखाने भी हैं। इन्होंने भी बैंक ऑफ महाराष्ट्र से चार भारी भरकम लोन लिए हैं। यह लोन भी प्रेम चावला भुगतान नहीं करने की वजह से उनकी कई संपत्ति एनपीए हो चुकी है। पड़ताल में पता चला है कि प्रेम चावला ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank Of Maharashtra Loan Scam Part 1) से सवा चौदह करोड़ रुपए से अधिक का लोन लिया है। दो लोन तीन—तीन करोड़ रुपए से अधिक के लिए गए हैं। इसी लोन रिकवरी के दौरान प्रेम चावला के इंडस्ट्रीयल एरिया में स्थित कारखाने में दो बार संदिग्ध परिस्थितियों में भी आग लग चुकी है। इसके बावजूद ईओडब्ल्यू प्रेम चावला को तीन करोड़ रूपए के लोन घोटाले (Bank Of Maharashtra Loan Ghotala) में क्लीनचिट दे रही है।

घोटाले की अगली कड़ी में पढ़िए सेटलमेंट का सच

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भोपाल में बैंक ऑफ महराष्ट्र का आंचलिक कार्यालय भवन- फाइल फोटो

इस मामले में ईओडब्ल्यू के एसपी राजेश मिश्रा (SP Rajesh Mishra) ने बताया कि प्रेम चावला या बैंक ऑफ महाराष्ट्र से जुड़े सभी बिंदुओं पर हमारी पड़ताल की जा रही है। मामला काफी संवेदनशील है इसलिए सबूत जुटाने के लिए विज्ञागीय पत्रचार में समय लगता है। हमने किसी व्यक्ति या संस्था को आरोपी या क्लीनचिट अभी नहीं दी है। मिश्रा ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद चार्जशीट अदालत में दाखिल की जाएगी। इधर, प्रेम चावला ने अपने बचाव में कहा कि उनके कारखाने में दो बार आग लगी है। यह हादसा चलते कारखाने में हुआ था। कारखाने में थिनर का काम होता है। जहां हादसे की संभावना बनी रहती है। वहीं प्रेम चावला ने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि उनके जितने भी लोन के प्रकरण थे वह सेटल हो गए हैं। जबकि मैदानी हकीकत यह है कि जब मलिका गर्ग ने लोन लिया था उस वक्त सारी संपत्ति को लेकर अलग-अलग बैंकों के ई-ऑक्शन के नोटिस समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहे थे। प्रेम चावला ने मलिका गर्ग के खाते से हुए लेन-देन को लेकर कहा कि वे इस संबंध में कोई बातचीत नहीं करना चाहते हैं।

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