MP Cop Gossip: स्पेशल डीजी के आदेशों का मखौल उड़ा

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MP Cop Gossip: पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली वाले दो शहरों को लेकर जारी हुआ था आदेश, महिला अपराध शाखा के अभियान ने थाने की कार्यप्रणाली को एक्सपोज कर दिया, राजधानी के चौकस निगाह वाले प्रभारी ने सरकार को किरकिरी होने से बचा लिया

MP Cop Gossip
सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई

भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग बहुत बड़ा है। उसके भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। इसमें कुछ बातें सामने आती है कुछ कानों तक में ही सीमित रह जाती है। ऐसे ही बातों का हमारा साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip)  हैं। जिसमें इस बार एक आदेश की विशेष चर्चा करना जरुरी है। यह आदेश प्रशासन शाखा के विशेष पुलिस महानिदेशक के हस्ताक्षर से 10 जून को जारी हुआ था। जिसके बाद लगातार दो दिनों तक इस आदेश को बहुत कुछ बोलकर ट्रोल किया जाने लगा। आदेश नया नहीं है लेकिन वक्त बदलाव का हो तो उसके बहुत सारे मायने निकलने लगते हैं।

हर थाने में बैठे हुए हैं कई अंगद

आदेश में चार बिंदुओं पर विशेष चर्चा हुई। इसमें पहला बिंदु यह था कि किसी भी थाने में एक पद पर किसी भी कर्मचारी की पदस्थापना चार या अधिकतम पांच वर्ष होना चाहिए। राजधानी में कई थानों में डेढ़ दशक से कर्मचारी तैनात चल रहे हैं। जिनकी सारी कुंडली प्रशासन शाखा के पास मौजूद भी है। फिर भी आदेश पुलिस कमिश्नर को जारी किया गया। इसी तरह दूसरा बिंदु यदि प्रमोशन हो जाता है उसी थाने में वह कर्मचारी तैनात नहीं होगा। शहर के चूना भट्टी, क्राइम ब्रांच, हबीबगंज, एमपी नगर थाने में तो यह आदेश कोई मायने ही नहीं रहता। सबकुछ थाने का प्रभारी तय करता है। तीसरे बिंदु में कहा गया है कि यदि थाने में तैनाती भी होती है तो उसका अंतराल तीन साल होना चाहिए। कई थानों में तो एक महीने का भी अंतराल नहीं हैं। ऐसा करने वाले तलैया थाने में तैनात कुछ कर्मचारी है। जो कागज पर श्यामला हिल्स एक महीने के लिए गए थे। यदि एक जोन में कांस्टेबल से लेकर एसआई रहा है तो वह उसे जोन से भी हटेगा। इस आदेश को भी कोई अफसर मानने को तैयार ही नहीं हैं। अंगद वाली यह कहानी सिर्फ कांस्टेबल या एसआई तक नहीं हैं। यह तैनाती के इस फॉर्मूले में राजपत्रित अधिकारी भी नियम नहीं मान रहे। शहर में एक थाने में कुछ महीने के भीतर में ही दूसरी बार थाना प्रभारी बनाए गए। कई अफसरों की नौकरी तो राजधानी में ही कट गई।

स्पेशल डीजी से पहले डीसीपी का आदेश

अंदरखाने की खबर है कि स्पेशल डीजी से पहले तैनाती को लेकर भोपाल डीसीपी मुख्यालय ने भी एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में पिछले दिनों 35 मैदानी कर्मचारियों की पोस्टिंग को लेकर तल्खी जताई गई थी। दरअसल, कई जोन में डीसीपी कार्यालय के जरिए कागज में तबादले हो रहे है। लेकिन, जिन कर्मचारियों के ट्रांसफर हुए उन्हें रिलीव ही नहीं किया गया। इसलिए डीसीपी ने एकतरफा रिलीव आदेश जारी किए हुए महीना बीत चुका है। लेकिन, बाबू राज के मकड़जाल में कई अफसरों के आदेश कचरे के टोकरे में धूल खा रहे हैं। थानों में वही चल रहा है जो डीसीपी कार्यालय में तैनात बाबू तय कर रहे हैं। आदेशों का मैदान में जाकर भौतिक परीक्षण भी नहीं किया जा रहा है। सारे अफसर कागज पर आदेश को अमल में लाने का बोलकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे हैं।

सीआईडी से पूर्व महिला अपराध शाखा का बयान

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मध्यप्रदेश महिला शाखा की तरफ से पिछले दिनों थानों में दर्ज गुमशुदगी को लेकर अभियान चलाया गया। इस अभियान के दौरान विदिशा जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र से लापता एक नाबालिग हो गया था। यह मामला 2015 का था। यह बालक 2025 में यानि दस साल बाद महिला शाखा के अभियान (MP Cop Gossip) में मिल गया। वाहवाही की इस बात को विभाग बता भी नहीं सकता था। क्योंकि लापता बालक विदिशा जिले में ही मिला। महिला अपराध शाखा के इस मुहिम में 100 बच्चे मिले हैं। यह बच्चे हरियाणा, यूपी, राजस्थान और गुजरात शहरों से बरामद किए गए। हर बच्चे के पीछे एक भारी भरकम पुलिस विभाग की लापरवाहियों से भरी कहानी है। जिस कारण मुहिम को लेकर जानकारी मीडिया से साझा करने की बजाय गुप्त और अतिसंवेदनशील नस्ती बताकर अफसर एक टेबल से दूसरी टेबल करते हुए पुलिस मुख्यालय में जानकारियां भेज रहे हैं।

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एनजीओ सामने आया तो निरीक्षक की किरकिरी तय

पिछले दिनों एक एनजीओ ने एक महिला को वीआईपी इलाके से बरामद किया। वह जहां भटक रही थी वहां राष्ट्रीय दल का कार्यालय भी है। उसकेे साथ कुछ घटना हुई है यह शंका एनजीओ ने जताई है। इसके बावजूद क्षेत्र में सक्रिय चौकस निगाह रखने वाले निरीक्षक साहब ने उसको विक्षिप्त बताकर गौरवी में भर्ती करा दिया। उसका सामना मीडिया या किसी अन्य से न हो जाए इसके भी इंतजाम उन्होंने किए थे। यह थाना प्रभारी महोदय पूर्व में बलात्कार के बाद जन्मी बच्ची के मामले को भी जमीन में दफना चुके हैं।

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