बस्तर पूछ रहा बड़ा सवाल- विकास के नाम पर आदिवासियों को रौंदने का सिलसिला कब होगा खत्म

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Bastar Tribes Protest बस्तर से द क्राइम इन्फो टीम की विशेष रिपोर्ट
आंदोलनरत आदिवासियों को फौरी राहत, सरकार ने पेड़ों की कटाई को रोका, होगी ग्राम सभा की आपत्तियों की जांच
अडानी की कंपनी को नियमों को तोड़ मरोड़कर दिया गया खनन आवंटन, पेड़ों की कटाई भी कंपनी ने बिना जरूरी कार्रवाई के कर दी थी शुरू

गर्मी से बेतरह परेशान देश के मध्य इलाके में किसी भी व्यक्ति से आप मौसम में आए बदलाव की बात करेंगे तो वह पेड़ों की कमी और जीवनशैली में आए बदलाव पर बेहद गंभीर जानकारियां दे सकता है। साथ ही चार—पांच फौरी उपाय भी बता सकता है कि हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए, कारों वाहनों का इस्तेमाल कम करना चाहिए, ग्रामीण जीवन की तरफ लौटना चाहिए आदि—आदि। लेकिन अगर उसी व्यक्ति से आप यह बात कहें पेड़ों को बचाने के लिए बस्तर में जो हजारों आदिवासी सत्ता से लड़ रहे हैं, पिछले पांच दिनों से अपने जीवन को दांव पर लगाए हुए हैं, 200 से ज्यादा लोग मरणासन्न हालत में पहुंच गए हैं, तो वह कहता है कि यह भटके लिए लोग हैं। विकास के लिए कुछ तो करना ही होगा। लेकिन पलटकर जब यही बात हमने आदिवासी समुदाय के आंदोलनकारी कुछ लोगों से पूछी तो उनका कहना था कि देश के विकास के लिए आखिर आदिवासी जीवन को रौंदने का सिलसिला कब तक चलेगा।

फिलहाल मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कटाई रोकने और ग्राम सभा की आपत्तियों की जांच करने का आदेश दिया है। हालांकि इसे फौरी राहत के तौर पर ही देखा जा रहा है।

दुबली पतली काया के हेम कहते हैं— आदिवासियों के लिए जंगल का महत्व सभी सरकारें जानती और मानती हैं, लेकिन उनकी नीतियों के क्रियान्वयन में ऐसी कोई बात दिखाई नहीं देती। पहले 15 साल तक भाजपा ने आदिवासियों की जमीन और जीवन से खिलवाड़ किया और अब कांग्रेस सरकार भी प्रदेश में यही कर रही है।

असल में बीते छह दिनों से बस्तर के अलग अलग इलाकों से आदिवासी NMDC (नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन) में विरोध करने पहुंच रहे हैं। इस प्रदर्शन को सांसद और स्थानीय नेताओं समेत कई पार्टियों का समर्थन हासिल है। इस प्रदर्शन का केंद्र छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में संचालित एनएमडीसी है।

शुक्रवार से शुरू हुआ प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल में चल रहे एनएमडीसी (नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कार्पोरेशन) में बीते शुक्रवार से आदिवासी प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन में शामिल होने के लिए बस्तर के अलग अलग इलाकों से आदिवासी किरंदुल पहुंच रहे हैं। इस प्रदर्शन में पांच से 10 हजार आदिवासियों की शिरकत है। ये आदिवासी दंतेवाड़ा के बचेली में एनएमडीसी के चेकपोस्ट को घेरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

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प्रदर्शन को विभिन्न दलों का समर्थन
आदिवासियों के इस प्रदर्शन को कांग्रेस, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे, आम आदमी पार्टी, सीपीआई जैसे राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है। बस्तर के नवनिर्वाचित सांसद दीपक बैज ने भी इस प्रदर्शन को समर्थन दिया है। राजनीतिक दलों के साथ ही तमाम ट्रेड यूनियन और अन्य वर्ग का भी आंदोलन को समर्थन हासिल है। दिलचस्प यह है कि इस प्रदर्शन को मंगलवार को नक्सलियों ने भी समर्थन दे दिया है।

क्या है पूरा मामला
अडानी की कंपनी को सरकार की ओर से एनएमडीसी के 13 नंबर लोह अस्यक खदान आवंटित की गई। इस आवंटन का आदिवासी लंबे समय से विरोध करते रहे हैं। इसमें आरोप है कि आवंटन में ग्रामसभा की अनुमति फर्जी तरीके से दबाव के तहत ली गई। जनवरी 2018 में सरकार की ओर से अडानी को 25 हजार पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई, लेकिन उस वक्त पेड़ों का कटान नहीं हो सका। अब 2019 की शुरुआत में एक बार फिर पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई। इसका विरोध किया जा रहा है।

क्या है पेड़ों की कटाई का नियम
सरकार की ओर से कटाई की सैद्धांतिक मंजूरी के बाद यह जरूरी है कि काटे जाने वाले पेड़ों की गिनती कर उनसे जलाउ लकड़ी और अन्य लकड़ी का अलग—अलग आकलन किया जाए। साथ ही इसमें होने वाले खर्च का आकलन और अन्य पर्यावरणीय अनुमति ली जाती है। खर्च की पूरी रकम संबंधित कंपनी जब वन विभाग को दे देती है, उसके बाद ही यह कटाई शुरू हो सकती है। इसमें भी वन विभाग ही पेड़ों को काट सकता है।

कंपनी ने खुद पेड़ों को काटना और जलाना किया शुरू
बस्तर के इस मामले में सैद्धांतिक मंजूरी के बाद कंपनी ने खुद ही पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। सवाल इस बात पर भी हैं कि मंजूरी के बाद खर्चों, पेड़ों के प्रकार आदि का आकलन और अन्य आवश्यक कार्यवाही इतनी जल्दी पूरी नहीं हो सकती है। इसलिए बिना किसी सर्वे के कंपनी ने खुद ही पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है। एनएमडीसी में तीन शिफ्ट में रोजाना काम होता है। जिसे करीब 2500 मजूदर अंजाम दे रहे थे, यानी पेड़ों की कटाई तेजी से की जा रही थी। सवाल यह भी है कि नियमत: जब वन विभाग ही पेड़ों की कटाई कर सकता है तो फिर कंपनी ने यह काम खुद अपने हाथों में ​क्यों लिया। जबकि कंपनी की ओर से आवश्यक सर्वे और खर्च की राशि वन विभाग को सौंपने आदि के कोई दस्तावेज मुहैया नहीं कराए जा रहे हैं।

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Bastar Tribes Protest नक्स​लियों ने की समझौता रद्द करने की मांग
मंगलवार को इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब आदिवासी आंदोलन को नक्सलियों ने समर्थन देने का ऐलान किया और अडानी के साथ किये गए समझौते को रद्द करने की मांग की। उन्होंने अपने पर्चे में लिखा है कि जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष को तेज करें। इससे पहले भी नक्सली इस आंदोलन का समर्थन करने की बात कह चुके हैं।

विरोध के पीछे रिवाज का आधार भी
इस प्रोजेक्ट में खनिज निकालने के लिए खुदाई होनी है। यह खुदाई बैलाडीला के नंदराज पहाड़ी पर होनी है। ऐतिहासिक रूप से नंदग्राम पहाड़ की पूजा आदिवासी अपने कुलदेव के रूप में करते हैं। प्रदर्शन के दौरान आदिवासी तीर धनुष सहित अपने पारंपरिक हथियार भी साथ लेकर पहुंचे हैं।

मंजूरी के लिए फर्जी ग्रामसभा
अडानी के प्रोजेक्ट में एक पेंच यह भी है कि इस मामले में जो ग्रामसभा की मंजूरी मिली है वह फर्जी है। ग्रामीण इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे, तो डिपाजिट तेरह को एनसीएल और फिर अडानी की कंपनी को देने के लिए फर्जी ग्रामसभाएं की गई। मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का कहना है कि— केन्द्र और राज्य की पूर्ववर्ती सरकार अडानी को डिपाजिट देना चाहती थी इसलिए नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए कार्रवाई को पूरा किया गया। जोगी ने कहा कि यह सब बर्दाश्त के बाहर है। बैलाडीला और डिपाजिट तेरह आदिवासियों की आस्था से जुड़ा है। यहां निजी कंपनी को काम करने अधिकृत करना आदिवासी बर्दाश्त नहीं करेंगे।

फिलहाल रोक दिया गया है कटाई का काम
इस बीच आदिवासियों की मांगों के संबंध में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ा फैसला लिया है कि इस मामले के हर पहलू की पूरी जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी। इसमें ग्रामसभा की मंजूरी की जांच, पेड़ों की कटाई में लापरवाही और जल्दबाजी आदि शामिल है। इस फैसले को मामले में फौरी राहत के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन अभी भी आदिवासियों की मुख्य मांग यानी खनन रोकने पर कोई ठोस फैसला होता नहीं दिख रहा है।

फिलहाल यह है वस्तुस्थिति
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जंगल की कटाई पर तुरंत रोक लगाने का निर्देश दिया है।
साल 2014 के ग्राम सभा के आरोपों की जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं।
इलाके में संचालित कार्यों पर तत्काल रोक लगाई जाएगी।
राज्य सरकार की ओर से केंद्र को पत्र लिखकर स्थानीय आदिवासियों की भावनाओं से अवगत कराया जाएगा।

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