Bhopal Custodial Death: राजधानी पुलिस अफसरों में एक—दूसरे को बचाओ संस्कृति हावी

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Bhopal Custodial Death: एक साल के भीतर में दूसरी कस्टोडियल डेथ पर किसी भी अफसर को अब तक नहीं हटाया, डीसीपी कार्यालय का पर्यवेक्षण फिर विवादों में आया, पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के सवा तीन साल के भीतर में तीसरी मौत, हमीदिया अस्पताल को बनाया गया पुलिस छावनी

Bhopal Custodial Death
सांकेतिक तस्वीर

भोपाल। मध्यप्रदेश के दो शहरों में लगभग सवा तीन साल पहले पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू की गई थी। तब से लेकर अब तक भोपाल पुलिस कमिश्नर दो ही बने हैं। इस अवधि के दौरान पुलिस कस्टडी (Bhopal Custodial Death) में तीन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन, किसी भी मामले में पुलिस कमिश्नर अ​थवा डीसीपी ने कोई भी कर्मचारी को लाइन हाजिर करना तो दूर सवाल—जवाब भी तलब नहीं किए हैं। एक बार फिर हनुमानगंज थाना पुलिस की नियमों को ताक पर रखकर की गई गिरफ्तारी और कोर्ट में पेश करने के दौरान बरती गई लापरवाही के चलते एक हिस्ट्रीशीटर बदमाश की मौत हो गई है। इस मौत ने पुलिस विभाग के भीतर अफसरों और मैदानी कर्मचारियों को बचाने की संस्कृति को एक्सपोज कर दिया है।

इस कारण विवादों में आ रहे डीसीपी

हनुमानगंज (Hanumanganj) थाना पुलिस ने 08 अप्रैल को समानांतर रोड पर वाहन चैकिंग के दौरान तीन युवकों को प्लेटिना मोटर सायकिल पर पकड़ा था। इसमें आरेापी महेश बघेल (Mahesh Baghel) पिता राम सिंह बघेल उम्र 22 साल, राजू मंडलोई (Raju Mandloi) पिता सूर सिंह मंडलोई उम्र 23 साल और युवराज केवट उर्फ युवराज मांझी उर्फ राजा (Yuvraj Kewat@Yuvraj Manjhi@Raja) पिता रमेश केवट उम्र 32 साल को दबोचा था। महेश बघेल और राजू मंडलोई सीहोर (Sehore) जिले के बिलकिसगंज (Bilkisganj) थाना क्षेत्र स्थित ग्राम झागरिया के रहने वाले हैं। जबकि युवराज केवट टीला जमालपुरा (Teela Jamalpura) स्थित पुतलीघर (Putlighar) के पास रहता था। युवराज केवट से बरामद प्लेटिना बाइक (Platina Bike) भोपाल टॉकीज से चोरी करना कबूला था। उसने बताया था कि आठ अन्य बाइक चोरी करके उसने महेश बघेल और राजू मंडलोई को दी थी। चोरी के वाहन वाहन पुट्ठा मील, पान मंडी समांतर रोड के पास लावारिस मिले थे। पुलिस के अधिकारी युवराज केवट को हिस्ट्रीशीटर और बदमाश जांच से पूर्व साबित करने में तुले हैं। यदि वह हिस्ट्रीशीटर था तो आखिर उसे चैक करने वाले अधिकारी एक साल तक किस तरह की निगरानी कर रहे थे। जबकि उसने जिन वाहनों को चोरी किया था वह पुलिस ने लावारिस बरामद किए। ऐसे ही कई सुलगते सवालों से पुलिस के अधिकारी घिरे हैं।

बीमार था उसके बावजूद डॉक्टर की बजाय जेल पहुंचाना लक्ष्य

युवराज केवट उर्फ युवराज मांझी को जिला अदालत (District Court) में 09 अप्रैल की शाम चार बजे ले जाने से पहले जेपी अस्पताल (JP Hospital) लाया गया था। परिजनों का आरोप है कि उसका लीवर खराब था। इसके अलावा उसे क्षय रोग भी था। पुलिस को सलाह दी गई थी कि इसकी तबीयत खराब है। इसे उपचार की आवश्यकता है। लेकिन, पुलिस (Bhopal Custodial Death) नहीं मानी और उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल के जरिए इलाज कराने का बोलकर अपने साथ ले गई थी। यह जानकारी युवराज केवट के छोटे भाई देवराज मांझी(Devraj Manjhi)  ने दी है। वहीं पुलिस का कहना है कि वह टीला जमालपुरा थाने का हिस्ट्रीशीटर बदमाश है। उसके खिलाफ हनुमानगंज थाने में 2022 और 2025 में वाहन चोरी के मामले दर्ज है। इसके अलावा टीटी नगर में 2024 में वाहन चोरी भी उससे बरामद हुई है। उससे गौतम नगर, ऐशबाग, छोला मंदिर, कोतवाली और रातीबड़ की वाहन चोरी कबूली है। आरोपी के कब्जे से एक बिना नंबर का भी वाहन बरामद हुआ है। मौत होने की खबर के बाद भारी पुलिस बल जेपी अस्पताल में पहुंच गया था। पुलिस ने बताया कि युवराज केवट के खिलाफ हनुमानगंज और टीला जमालपुरा थाने में आर्मस एक्ट, मारपीट समेत करीब तेरह प्रकरण पहले से दर्ज हैं।

मौत के बाद गुमशुदगी का मामला भी जांच में आएगा

युवराज मांझी उर्फ युवराज केवट की मौत के मामले ने तूल पकड़ लिया है। जिसमें राजधानी पुलिस के अफसर बैकफुट में आ गई है। उसको आदतन बदमाश साबित करते हुए पुलिस लापरवाही को टालने का प्रयास कर रही है। यह लापरवाही केवल युवराज तक सीमित नहीं थी। इसी प्रकरण में वाहन खरीदने का आरोपी बनाए गए महेश बघेल (Mahesh Baghel) के मामले में भी पुलिस बुरी तरफ से फंस गई है। दरअसल, महेश बघेल की रातीबड़ स्थित मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान है। वह सामान लेने जाने का बोलकर निकला था। उसका घर सीहोर जिले के बिलकिसगंज में हैं। यहां पुलिस ने उसे पकड़ लिया था। लेकिन, इसकी जानकारी परिजनों को नहीं दी थी। नतीजतन उन्होंने सीहोर जिले के बिलकिसगंज थाने में पिता ने गुमशुदगी दर्ज कराई थी। परिवार गुमशुदगी के विज्ञापन भी प्रकाशित करा रहा था। परिवार को 09 अप्रैल को पता चला कि उसको हनुमानगंज थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा है। जबकि नियम है कि गिरफ्तारी की सूचना परिजनों को देना अनिवार्य हैं। यानि पुलिस की टीम गुपचुप तरीके से तीनों आरोपियों को ​अभिरक्षा में रखने के बाद पूछताछ कर रही थी।

यह है वह अधिकारी जो अब मजिस्ट्रीयल जांच में फंसेंगें

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हनुमानगंज थाना, जिला भोपाल— फाइल फोटो

कस्टोडियल डेथ में न्यायिक जांच करने के नियमानुसार आदेश होते ही है। मामले की जांच न्यायाधीश कपिल बौरासी कर रहे हैं। वे  11 अप्रैल सुबह हमीदिया अस्पताल (Hamidia Hospital) में स्थित मॉर्चुरी रुम में पहुंच गए हैं। उन्होंने पुलिस कस्टडी में खत्म हुए युवराज केवट के परिजनों से बातचीत भी की है। इधर, डीसीपी जोन—3 रियाज इकबाल (DCP Riyaz Iqbal) का कहना है कि पुलिसकर्मी की कोई लापरवाही नहीं है। युवराज बीमार था। इसलिए किसी भी अफसर या कर्मचारी को नहीं हटाया। मजिस्ट्रीयल जांच के बाद जो निर्णय होगा वैसी कार्रवाई की जाएगी। इस धरपकड़ और गिरफ्तारी के मामले में हनुमानगंज थाने के निरीक्षक के अलावा एसआई ओम प्रकाश यादव, एएसआई मुश्ताक बक्श, हवलदार 1030 मनीष मिश्रा, 2883 गोविन्दराम, आरक्षक 3485 जितेन्द्र सिहं, 2077 आकाश श्रीवास्तव, 2584 अभिषेक कुमार, 3613 अजय तिवारी, 1773 युवराज सिंह शामिल थे। कस्टोडियल डेथ में यह सभी जांच के दायरे में आ सकते हैं। इस मामले में एमपी नगर पुलिस मर्ग कायम कर शव को पीएम के लिए भेज रही है। यह पीएम 11 अप्रैल सुबह हमीदिया अस्पताल में किया जाएगा।

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यह है दो अन्य मामले जिस पर आज तक कोई निष्कर्ष नहीं आया

इससे पहले दो अन्य कस्टोडियल डेथ के मामले सामने आए हैं। जिसमें क्राइम ब्रांच और कोलार रोड थाना पुलिस के अफसर और कर्मचारी जांच के दायरे में हैं। इन दोनों ही मामलों में अभी तक कोई निष्कर्ष सामने नहीं आया है। कोलार रोड (Kolar Road) थाना क्षेत्र स्थित जनवरी, 2024 में पुलिस अभिरक्षा के दौरान किसान मुकेश लोधी (Mukesh Lodhi) की मौत हो गई थी। यह मामला पुलिस ने दबाकर रखा था। इसी तरह दूसरा प्रकरण क्राइम ब्रांच (Crime Branch) का है। शाजापुर (Shajapur) निवासी घनश्याम उर्फ दिनेश (Ghanshyam@Dinesh) उम्र 25 साल की मौत हुई थी। उसे गुपचुप तरीके से बैरागढ़ से नर्मदा अस्पताल (Narmada Hospital) लाया गया था। यह मौत का मामला 10 अगस्त, 2022 को मीडिया के सामने आया था। इससे पहले इस प्रकरण को भी अफसरों ने दबाकर रखा था।

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