इस मॉडल ने एक पैग देने से किया था इनकार, मिली मौत की सजा

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मॉडल जेसिका लाल

नशे में धुत कांग्रेस नेता के बेटे ने मार दी थी गोली

दिल्ली। 1999 में महरौली इलाके में हुए एक कत्ल ने देश को हिलाकर रख दिया था। मॉडल जेसिका लाल की हत्या महज एक पैग के लिए कर दी गई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा उर्फ सिद्धार्थ वशिष्ठ ने गोली मारकर जेसिका लाल की हत्या कर दी। जानिए क्या थी पूरी वजह जिसकी सजा जेसिका लाल को जान देकर चुकानी पड़ी।

ये है उस काली रात की कहानी

29 अप्रैल को बीना रमानी के टैमरिंड कोर्ट नाम के रेस्तरां में थर्सडे स्पेशल पार्टी रखी गई थी। उस रात को जेसिका लाल, बीना रमानी की बेटी मालिनी रमानी, दोस्त शायन मुंशी और अन्य कुछ मॉडल्स इस पार्टी में मेहमानों को जाम परोस रहे थे। इसी रात करीब 10 बजे पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा का 24 साल का बेटा मनु शर्मा चंड़ीगढ़ से दिल्ली पहुंचा था। वो अपने दोस्तों के घर गया। फ्लैट पर तीन लोग अमरिंदर सिंह कोहली उर्फ टोनी, राज्यसभा सांसद डीपी यादव का बेटा विकास यादव और एक सहकर्मी आलोक खन्ना पहले मौजूद थे। चारों ने फ्लैट पर ही शराब के कुछ पैग पिए और फिर दो अलग-अलग गाड़ियों से टैमरिंड कोर्ट पहुंचे। मनु शर्मा टैमरिंड कोर्ट में होने वाली पार्टी में पहले भी शामिल हो चुका था।

हत्या का दोषी मनु शर्मा

पार्टी में शराब पीकर ही पहुंचा था मनु

पहले से शराब के नशे में पहुंचे मनु शर्मा ने पार्टी में और शराब पी। देर रात तक पीने-पिलाने का दौर चलता रहा और पार्टी खत्म करने का ऐलान कर दिया गया। इसी बीच करीब 2 बजे मनु शर्मा ने एक और जाम देने की मांग की। लेकिन शराब परोस रही जेसिका लाल ने इनकार कर दिया। मनु शर्मा ने उसे एक पैग के बदले एक हजार रुपए देने की कोशिश की। लेकिन जेसिका लाल नहीं मानी। जिसके बाद नशे में धुत मनु शर्मा ने 0.22 बोर की पिस्टल जेब से निकाली और धड़ाधड़ दो फायर कर दिए। एक गोली छत पर लगी और दूसरी जेसिका लाल की कनपटी में जा धसी। गोली चलने की आवाज सुनकर अफरा-तफरी मच गई और मौका पाते ही आरोपी फरार होने में कामयाब हो गए। पार्टी का आयोजन कर रही बीना रमानी और उनके सहयोगी जेसिका लाल को हॉस्पिटल ले गए। जहां रात में ही उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम के लिए पुलिस शव को एम्स ले गई।

रातभर छिपते रहे आरोपी

आलोक खन्ना, अमरदीप सिंह गिल (टोनी) और विकास यादव, एक साथ, वहां से आलोक की कार में चुपचाप निकल गए, जबकि मनु शर्मा कुछ देर के लिए एक किलोमीटर दूर स्थित एक गांव में जा छिपा। तीनों ने अमित झिंगन को अपने वसंत कुंज स्थित निवास पर छोड़ दिया और टोनी के ‘फ्रेंड्स कालोनी’ स्थित निवास पर पहुचे, जहां बाद में पूरे रास्ते दो पहिया वाहन की सहायता से चल कर पहुचा मनु शर्मा भी उनके साथ शामिल हो गया। बाद में, मनु शर्मा ने अमित झिंगन को बुलाया, जिसकी सफ़ेद मारुती जिप्सी में मनु शर्मा, विकास यादव और अमित क़ुतुब कोलोनेड के आगे महरौली क्षेत्र तक गए, जहां पास के एक गाँव में अमित से बालू के ढेर में से हथियार खोद कर निकालने को कहा, जहां गोली चलने के तुरंत बाद जा कर छिपे मनु ने इसे छिपा दिया था। इसके बाद, झिंगन ने मनु को टोनी के निवास पर छोड़ दिया और घर लौट आया। मनु शर्मा ने विकास यादव के गाजियाबाद स्थित निवास में रात बिताई, बाद में उनके भागने में इस्तेमाल किये गए वाहन, टाटा सिएरा, को नोएडा में लावारिस पाया गया था।

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ऐसे गिरफ्त में आए आरोपी

घटना के बाद मनु शर्मा परिवार सहित फरार हो गया था जिसे बाद में पुलिस ने दबोच लिया। वहीं आलोक खन्ना और अमरदीप सिंह गिल (टोनी) को 4 मई को गिरफ्तार कर लिया गया। 8 मई को, बीना रमानी, उसका पति जॉर्ज मेलहॉट और उसकी बेटी मालिनी रमानी को अवैध बार “टैमरिंड कोर्ट” चलाने के लिए उत्पाद शुल्क अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।

निचली अदालत से बरी हो गए सभी आरोपी

लगभग एक सौ गवाहों के साथ व्यापक सुनवाई के बाद, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस.एल.भयाना की अध्यक्षता वाली दिल्ली ट्राएल अदालत ने 21 फ़रवरी 2006 को जेसिका लाल ह्त्या काण्ड में 9 आरोपियों को बरी कर दिया। जिनको बरी किया गया वो थे, मनु शर्मा, विकास यादव, मनु के चाचा श्याम सुन्दर शर्मा, अमरदीप सिंह गिल और आलोक खन्ना, बहुराष्ट्रीय शीतल पेय की कंपनी के दोनों पूर्व अधिकारी, क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह, हरविंदर चोपड़ा, विकास गिल और राजा चोपड़ा. सभी 12 आरोपियों में से दो, रविंदर किशन सुदन और धनराज फरार थे, वही निचली अदालत ने आरोप तय करने के समय अमित झिंगन को मुक्त कर दिया था।

अदालत द्वारा आरोप मुक्ति का बताया गया आधार था,पुलिस जेसिका लाल पर इस्तेमाल किये गए हथियार को नहीं पा सकी थी, साथ ही साथ अपने इस सिद्धांत को भी नहीं स्थापित कर पायी कि दो गोलिया, जिनके खोल घटना स्थल से मिले थे, एक ही हथियार से चलाये गए थे, ; पुलिस के सभी तीन चश्मदीद गवाह, टैमरिंड कोर्ट के बिजली मेकेनिक शिव लाल यादव, अभिनेता शयन मुंशी और रेस्टोरेंट के एक आगंतुक करन राजपूत मुक़दमे में गवाही से पलट गए”, इसके अतिरिक्त पुलिस परिस्थितियों की उन कड़ियों को नहीं जोड़ सकी जो घटना तक पहुचा सके और उस हथियार को नहीं पा सके जो अपराध में प्रयुक्त हुआ था।

जेसिका लाल के दोस्त ने ही बदल दिए बयान

एक महत्वाकांक्षी मॉडल और जेसिका लाल का परिचित, शायन मुंशी जिस समय गोली चली उस समय जेसिका के साथ बार के पीछे का काम संभाल रहा था। अपने प्रारंभिक वक्तव्य में उसने स्पष्ट कहा कि मनु शर्मा ने दो बार बंदूक चलाई, एक बार हवा में और एक बार जेसिका पर. इस गवाही को पुलिस द्वारा अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर (FIR)) में दर्ज किया गया है, जो शायन द्वारा हस्ताक्षरित है। हालांकि, सुनवाई के दौरान उसने ये दावा किया कि वह हिन्दी नहीं जानता था उसे इस बारे में पता नहीं था कि उसने किस पर हस्ताक्षर किए थे।

दो बंदूक सिद्धांत का जन्म

सुनवाई में, शायन ने कहा कि मनु शर्मा ने केवल एक बार गोली चलाई थी और वो भी हवा में. उसने मनु के कपडे ध्यान पूर्वक बताये. बाद में, उसने कहा कि एक और गोली, किसी और के द्वारा चलाई गयी, जो जेसिका को लगी। इस आदमी की पोशाक के बारे में वो गोलमाल बोल रहा था और कह रहा था कि उसने “हल्के रंग” की शर्ट पहन रखी थी। इसने “दो बंदूक सिद्धांत” को जन्म दिया- जिसका साथ फोरेंसिक रिपोर्ट ने दिया जिसमे कहा गया था कि गोलियाँ विभिन्न हथियारों से चली थी।

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जन आंदोलन ने दिलाया न्याय

जेसिका लाल की हत्या के सभी आरोपियों के बरी होने से देशभर में निराशा की लहर दौड़ पड़ी। लोग कानून के खिलाफ खुलकर सामने आ गए। नो वन किल जेसिका लाइन जैसी टैगलाइन मीडिया में सामने आने लगी। दवाब बढ़ा तो फिर एक बार सुनवाई हुई। 25 मार्च 2006 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेसिका लाल हत्या आरोपमुक्ति के खिलाफ पुलिस की एक अपील स्वीकार की, मुख्य अभियुक्त मनु शर्मा तथा आठ अन्य के खिलाफ जमानती वारंट जारी करते हुए उनके देश छोड़ने पर रोक लगा दी। यह एक पुनः सुनवाई नहीं थी, बल्कि केवल एक पहले से ही निचली अदालत में रखे जा चुके साक्ष्यों के आधार पर अपील मात्र थी। 9 सितंबर को एक मनु शर्मा के पिता विनोद शर्मा का एक स्टिंग सामने आया जिसमें गवाहों को खरीद-फरोख्त उजागर हो गई। 15 दिसम्बर 2006 को न्यायमूर्ति आर.एस.सोढ़ी और न्यायमूर्ति पी.के.भसीन की उच्च न्यायालय की बेंच ने एक 61 पन्ने के फैसले में मनु शर्मा को मौजूदा सबूतों के आधार पर दोषी करार दिया। निर्णय ने कहा कि निचली अदालत बीना रमानी और दीपक भोजवानी जैसे गवाहों की गवाही पर ध्यान नहीं देकर ढीलापन दर्शाया है: “ज्ञानवान जज को पूरे सम्मान के साथ, हम इस बिंदु पर ध्यान दिलाना चाहते हैं कि गवाहों की विश्वसनीयता का परीक्षण करने का ये तरीका शायद ही सबूत के मूल्यांकन का एक नियम मात्र है।.. जाहिर है, यह दिमाग के इस्तेमाल में की गयी गलती को दर्शाता है और एक विशिष्ट अंत, जैसे कि दोषमुक्ति की ओर जल्दबाजी के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। विशेष रूप से, प्रमुख गवाह शायन मुंशी की गंभीर आलोचना हुई और उसे आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है। उसकी अपनी ही एफआईआर को पलटने के बारे में फैसला बताता है। अब दावा कर रहा है कि उक्त कथन हिन्दी में दर्ज किया गया था जबकि उसने अंग्रेजी में पूरी कहानी बतायी थी क्योकि वो हिन्दी नहीं जानता था। हमें मुंशी का ये स्पष्टीकरण विश्वसनीय नहीं लग रहा है।” दो बंदूक सिद्धांत के बारे में है मुंशी की गवाही के बारे में, फैसला कहता हैं। “अदालत में उन्होंने पलटी खा कर एक नया वर्णन प्रस्तुत कर दिया कि वहाँ बार काउंटर में दो लोग थे। उनके इस पहलू पर किसी भी तरह ये संदेह नहीं है कि पूरी तरह से झूठ बोल रहा है। 20 दिसम्बर 2006 को, मनु शर्मा को आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी गयी। अन्य आरोपियों, विकास यादव और अमरदीप सिंह गिल, को सबूत नष्ट करने के लिए चार साल कारावास की सज़ा सुनाई गयी।

 

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