MP में Forensic Lab के बुरे हालात

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MP Forensic Lab: व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिए स्पेशल आर्मस फोर्स में तैनात साइंस सब्जेक्ट के कांस्टेबल को अटैच करने की ‘आत्मनिर्भर’ योजना, पीएचक्यू की तकनीकी सेवा ने 10 बिंदुओं पर अलग—अलग 22 बटालियन के कमांडेंट से यह बोलकर मांगी जानकारी

MP Forensic Lab
भोपाल रीजनल लैब- File Photo

भोपाल। मध्यप्रदेश (MP Forensic Lab) का आर्थिक ढांचा कई महीनों से तबाही की तरफ लुढ़क रहा है। राजधानी भोपाल में ही नगर निगम के अस्थायी कर्मचारियों के वेतन को लेकर सस्पेंस बनने वाला है। कुछ दिन पहले पूरे एमपी पुलिस का पेट्रोल—डीजल का बजट मंजूर नहीं हुआ था। सिर्फ तीन दिन का ईंधन पेट्रोल पंप पर था। यह बात मीडिया में लीक हुई तो सरकार ने आनन—फानन में इंतजाम कराए। अब खबर आ रही है कि एमपी की कई फोरेंसिक लैब के बुरे हालात है। यहां तकनीकी सहायकों के पद रिक्त हैं। जिनके अभाव में जांच से जुड़े कई प्रकरण लंबित हो चले हैं। इसका पुलिस मुख्यालय (MP Police Budget) की तकनीकी सेवा ने बीच का रास्ता निकाल लिया है। लेकिन, यह रास्ता काफी चौका देने वाला है।

इन्होंने भेजा है सभी कमांडेंट को यह बोलकर पत्र

जानकारी के अनुसार विकल्प के तौर पर तकनीकी सेवा ने निर्णय लिया है कि फोरेंसिक लैब में विज्ञान विषय से स्नातक या स्नातकोत्तर करने वाले कांस्टेबल को तैनात किया जाएगा। इस संबंध में तकनीकी सेवा में विशेष पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह (IPS GP Singh) ने आदेश दिया है। यह आदेश 1 मार्च को प्रदेश की 22 बटालियन के कमांडेंट को भेजा गया है। जिसमें कहा गया है कि ऐसे आरक्षक जो फोरेंसिक लैब (MP Lab Status) में जाने के इच्छुक हैं उनसे सहमति पत्र लिया जाए। इसके लिए दस बिंदुओं पर जानकारी भरकर देने कके लिए बोला है। इसमें कर्मचारी के नाम से लेकर कंप्यूटर, टाईपिंग और तैनाती का स्थान मांगा गया है। आदेश में कहा गया है कि सागर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर की लैब में प्रकरणों की संख्या काफी लंबित है। जिसकी वजह सहायक स्टाफ की कमी को बताया गया है।

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यह होता है भर्ती पूर्व नियम

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यह है वह आदेश जो पूरे एमपी के भीतर पुलिस विभाग की दुर्दशा को लेकर हंसी का कारण बन रहा है— सोशल मीडिया से लिया गया चित्र

मध्यप्रदेश पुलिस विभाग में कई विभाग होते हैं। इसमें भर्ती भी उसके ही अनुरूप होती है। मैदानी अमले के कर्मचारी की भर्ती को जनरल ड्यूटी बोला जाता है। उसी तरह तकनीकी सेवाओं की भर्ती के मानक अलग होते हैं। इसी तरह स्पेशल आर्मस फोर्स में तैनात कांस्टेबल को हथियार को चलाने की तकनीक से लैस किया जाता है। उसका परीक्षण सभी आपदाओं से निपटने से जुड़ा होता है। ऐसे में स्पेशल आर्मस फोर्स के सिपाही को अब एफएसएल में अटैच किया जा रहा है। इसमें कार्य कुशलता और उसके प्रति परीक्षण समेत कई गंभीर विषयों पर चुनौतियां तकनीकी सेवा की साख को कम—ज्यादा कर सकती है। इसके बावजूद इस विकल्प पर सहमति देकर पुलिस मुख्यालय ने अपनी किरकिरी राष्ट्रीय स्तर पर जरूर करा ली है। यह आदेश सोशल मीडिया में भी वायरल हो गया है। जिसको लेकर कई तरह के कमेंट सरकार और सिस्टम को लेकर किए जा रहे हैं।

यह है कागजों पर आत्मनिर्भर एमपी की सच्चाई

मध्यप्रदेश (MP Forensic Lab) का बुधवार को ही बजट सामने आया है। जिसमें गृह विभाग का करीब 10 हजार 300 करोड़ रूपए तय है। इसमें ही पूरे एमपी के थाने, लैब और आवास बनने से लेकर सबकुछ तय किया जाता है। मैन स्ट्रीम मीडिया में ही बताया गया है कि प्रदेश की लैब में लंबित नमूनों की संख्या साढ़े नौ हजार पहुंच गई है। इस कारण ग्वालियर लैब शुरू किए जाने को मंजूरी दी गई है। अब इस लैब के लिए वैज्ञानिक, सहायक वैज्ञानिक से लेकर अन्य स्टाफ की भर्ती समेत अन्य विषय मुंह बाएं खड़े है। एमपी में फोरेंसिक लैब में अब तक कोई स्थायी डायरेक्टर भी तैनात नहीं किया जा सका है। अभी भी प्रभार भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी शशिकांत शुक्ला (IPS Shashikant Shukla) के पास है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने एमपी पीएससी के जरिए 44 वैज्ञानिकों की भर्ती परीक्षा आयोजित की थी। जिनका चयन हुआ है उनके दस्तावेजों के परीक्षण का काम चल रहा है।

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