ISRO S Band MOU: अमेरिका के वॉल स्ट्रीट जर्नल में 13 अक्टूबर को प्रकाशित विज्ञापन के पीछे का पूरा सच

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ISRO S Band MOU: कांग्रेस सरकार में जन्म हुए इस विवादित करार के कारण सत्रह साल बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई भारत की किरकिरी, भारत के खिलाफ अमेरिका से पब्लिश वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित विज्ञापन के पीछे जो मास्टरमाइंड…

ISRO S Band MOU
वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित विज्ञापन जो इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।

दिल्ली। अमेरिका के वॉल स्ट्रीट जर्नल में 13 अक्टूबर को भारत के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया है। इसमें भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत कई अन्य की तस्वीर छपी है। यह विज्ञापन पूरी तरह से भारत की नीतियों के खिलाफ है। दूसरा संयोग यह भी है कि जब यह हरकत हुई उस वक्त भारत की वित्त मंत्री निर्मलासीतारमण अमेरिका में ही मौजूद थी। इस विज्ञापन (ISRO S Band MOU) की वजह से दिल्ली दरबार में जमकर किरकिरी हो रही है। जिसके बचाव में पूरा दिल्ली दरबार जुट गया है। इस विज्ञापन के पीछे जो मास्टरमाइंड है वह सीबीआई और ईडी की रडार में हैं। जिसके खिलाफ पिछले दिनों शिकंजा कसा जा रहा है। इस पूरे विवाद के पीछे कांग्रेस सरकार में हुए एक करार के विवादास्पद होने का भी मामला है। जिसमें भारत की इसरो संस्था की एक कंपनी और अमेरिका की एक कंपनी शामिल है।

विज्ञापन में यह बोलकर नीतियों को कठघरे में लाया गया

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित विज्ञापन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Seetaraman) के अलावा सुप्रीम कोर्ट के जजों, प्रवर्तन निदेशालय और देवास-एंट्रिक्स मामले से जुड़े रहे अन्य अधिकारियों को वॉन्टेड बताया गया है। वहीं इनके अमेरिका पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। अंग्रेजी में प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया है कि मिलिए उन अधिकारियों से जिन्होंने भारत को निवेश के लिए एक असुरक्षित जगह बना दिया। जिन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है उनमें 11 चेहरे हैं। विज्ञापन का टाइटल मोदीज़ मैग्नित्सकी 11 है। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी सरकार के 2016 के ग्लोबल मैग्नित्सकी क़ानून के तहत उन विदेशी सरकार के अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जिन्होंने मानवाधिकार उल्लंघन किया हो। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की सालाना बैठक में शामिल होने 11 अक्टूबर को वॉशिंगटन पहुंची थीं। वे 16 अक्टूबर तक अमेरिका में थी।

विज्ञापन में प्रकाशित चेहरे जिनके पीछे यह व्यक्ति

अमेरिका की ग़ैर-सरकारी संस्था फ्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम ने इस विज्ञापन को जारी किया। फ़्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम की वेबसाइट के मुताबिक़ वो एक शैक्षिक संस्थान है जो कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, शक्ति के माध्यम से शांति, सीमित सरकार, मुक्त उद्यम, मुक्त बाज़ार और पारंपरिक अमेरिकी मूल्यों के सिद्धांत को बढ़ावा देता है। विज्ञापन (ISRO S Band MOU) में कहा गया है कि हम अमेरिकी सरकार से मांग करते हैं कि वो ग्लोबल मैग्नित्सकी ह्यूमन राइट्स अकाउंटेबिलिटी एक्ट के तहत इनके ख़िलाफ़ आर्थिक और वीज़ा प्रतिबंध लगाए। मोदी के शासन में क़ानून के राज में गिरावट आई है और भारत निवेश के लिए ख़तरनाक जगह बन गया है। इसी साल अगस्त में फ़्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम ने ग्लोबल मैग्नित्सकी ह्यूमन राइट्स अकाउंटेबिलिटी एक्ट के तहत एक याचिका दायर की थी। जिसमें उसने भारतीय अधिकारियों पर संस्थाओं के ग़लत इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए कहा था कि वे भारत की आपराधिक जांच एजेंसियों और अदालतों के ज़रिए एक अनुबंध विवाद के दायित्व पर गतिरोध पैदा कर रहे है। इस याचिका के दस्तावेज़ में दर्ज था कि फ़्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम इस याचिका को देवास मल्टीमीडिया अमेरिका इंक और उसके सह-संस्थापक रामचंद्र विश्वनाथन की ओर से दायर कर रही है। अख़बार में छपे विज्ञापन में जिन लोगों के नाम हैं उनमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, एंट्रिक्स चैयरमेन राकेश शशिभूषण, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एन. वेंकटरमन, जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम, सीबीआई डीएसपी आशीष पारिक, ईडी डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर ए. सादिक़ मोहम्मद नैजनार, असिस्टेंट डायरेक्टर आर. राजेश और स्पेशल जज चंद्र शेखर शामिल हैं।

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यह बोलकर जताया गया विरोध

इस विज्ञापन को फ्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम के संस्थापक और रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर जॉर्ज लैंड्रिथ ने ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है कि फ़्रंटियर्स ऑफ़ फ़्रीडम का नया विज्ञापन इंडियाज़ मैग्नित्सकी इलेवन और वित्त मंत्री की कार्रवाई को बेनक़ाब करता है, जिन्होंने भारत में क़ानून के शासन और निवेश के माहौल को नष्ट कर दिया हैं। उन्होंने अगले ट्वीट में लिखा है इंडियाज़ मैग्नित्सकी इलेवन, निर्मला सीतारमण, नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने भारत में संभावित निवेशकों को साफ़ संदेश दिया है कि भारत निवेश के लिए ख़तरनाक जगह है। विज्ञापन (ISRO S Band MOU)  को लेकर भारत में कई लोग इसकी निंदा कर रहे हैं। वहीं कुछ ने इस विज्ञापन के पीछे किसी और शख़्स के होने की बात कही है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता (Kanchan Gupta) ने ट्वीट किया है कि जालसाज़ों के ज़रिए अमेरिकी मीडिया का हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाना शर्मनाक है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में भारत सरकार और भारत को ऐसे निशाना बनाना हैरतअंगेज़ रूप से वीभत्स है। कंचन गुप्ता ने ही रामचंद्र विश्वनाथन (Ramchandra Vishwanathan) का नाम लेकर इस पूरे मामले को सामने लाया। वहीं, ब्रिटिश मिडिल ईस्ट सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ एंड रिसर्च में स्ट्रैटेजिक पॉलिटिकल अफ़ेयर्स के एक्सपर्ट अमजद ताहा ट्वीट करते हैं कि यह पत्रकारिता नहीं बल्कि एक मानहानि वाला बयान है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की विज्ञापन नीति क्या है। यह पत्रकारिता के ख़िलाफ़ एक कलंक है। हम इस अपमान के ख़िलाफ़ भारत के साथ खड़े हैं।

यह है पूरे विवाद की जड़ का हिस्सा

भारत के खिलाफ प्रकाशित इस विज्ञापन के मामले में पड़ताल की गई। जिसके लिए हमने लाइव हिंदुस्तान, बीबीसी डॉट कॉम, लोकमत, जी न्यूज से लेकर अन्य मीडिया में आई समाचारों का अध्ययन किया। अध्ययन के केंद्र बिंदु में रामचंद्र विश्वनाथन है। पड़ताल में सामने आया कि अमेरिकी नागरिक रामचंद्र विश्वनाथन देवास के सह-संस्थापक रहे हैं। बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप कंपनी देवास मल्टीमीडिया और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की कमर्शियल कंपनी एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन के बीच 28 फरवरी, 2005 में एक सैटेलाइट सौदे का करार हुआ था। इसी मामले में सितंबर, 2022  में बेंगलुरु की एक विशेष अदालत ने ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में रामचंद्र विश्वनाथन को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने की अनुमति दी थी। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने देवास मल्टीमीडिया के पक्ष में साल 2015 के इंटरनेशनल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स (आईसीसी) के 1.3 अरब डॉलर के फ़ैसले को पलट दिया था। भारत सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों पर विश्वनाथन की गिरफ़्तारी चाहती है और उसने द्विपक्षीय क़ानून म्यूचुल लीगल असिस्टेंट ट्रीटी के तहत मॉरीशस में देवास के अकाउंट्स फ़्रीज़ कर दिए थे। इसके साथ ही सरकार ने इंटरपोल से विश्वनाथ के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नॉटिस जारी करने और अमेरिका से उनका प्रत्यर्पण करने की मांग की है।

मनमोहन सिंह सरकार में हुआ था करार

बैंगलुरू की देवास मल्टीमीडिया कंपनी ने दो सैटेलाइट जीसैट 6 और जीसैट6ए के लिए इसरो की कंपनी एंट्रीक्स से करार किया था। जीसैट 6 के निर्माण में 269 करोड़ तो जीसैट6ए के निर्माण में 147 करोड़ रूपए का खर्च आना था। कंपनी ने 70 मैगाहर्टज का करार किया था। जिसके तहत 12 साल की अवधि में कंपनी को 30 करोड़ डॉलर का भुगतान करना था। यह करार 2011 की शुरूआत में विवादों में आ गया। जिसके तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (EX PM Manmohan Singh) की सरकार ने एफआईआर दर्ज करने का निर्णय लिया। यह एफआईआर सीबीआई ने 16 मार्च, 2015 को की थी। जिसकी चार्जशीट सी​बीआई ने अगस्त, 2016 में दाखिल की थी। इस मामले में इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर, ईडी आर श्रीधर मूर्ति, फोर्ज एडवाइजर्स के पूर्व प्रबंध निदेशक रामचंद्र विश्वनाथन, निदेशक एमजी चंद्रशेखर, अंतरिक्ष विभाग के पूर्व सचिव वीणा एस राव, इसरो के तत्कालीन निदेशक ए भास्कर नारायण राव, डी वेणुगोपाल, एम.उमेश का नाम था। हालांकि दिसंबर, 2017 में सभी आरोपियों को जमानत मिल गई थी।
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