रफाल के राजनीतिक घमासान की मुख्य कड़ी का अवसान

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गोआ। रफाल रक्षा सौदों के मामले में एक बड़ी कड़ी की भूमिका में तटस्थ रहकर महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाले मनोहर पर्रिकर का रविवार को निधन हो गया। पर्रिकर देश के लिए आखिरी सांस तक काम करते रहे। वह चार बार गोआ के सीएम भी रहे। उन्होंने रफाल सौदों में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों पर भाजपा के लिए संकट मोचन की भूमिका आखिरी समय तक निभाई। राहुल और पर्रिकर की मुलाकात के बाद कई मायने निकाल राजनीति में ख़ुसूर पुसुर शुरू हो गई थी। पर्रिकर के कार्यकाल में ही पहली सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी।

पहले आईआईटीअन जो नेता बने

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की उम्र 63  साल थी। वह एक साल से अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित थे। उनका इलाज अमरीका के साथ नई दिल्ली स्थित एम्स और मुंबई के एक निजी अस्पताल में चल रहा था। पर्रिकर का जन्म गोवा की राजधानी पणजी से क़रीब 13 किलोमीटर दूर मापुसा में 13 दिसंबर, 1955 को हुआ था। उन्होंने मडगांव के लोयला हाई स्कूल से पढ़ाई की और आईआईटी मुंबई से 1978 में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

रक्षा मंत्री बनाने सांसद बनाया

पर्रिकर वह नेता है जिन्होंने मोदी को देश के उपयुक्त पीएम कहकर भाजपा कार्यकारिणी की सभा में सबको चौका दिया था। वे 2014 से 2017 तक भारत के रक्षा मंत्री के कार्यकाल के दौरान वो उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद थे। उन्हें सांसद बनाने के लिए प्ररधानमंत्री ने मनाया था।

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अब गोआ सरकार पर संकट

मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद गोवा की बीजेपी सरकार पर संकट के बादल गहरा सकते है।
गोवा में बीजेपी को समर्थन करने वाली महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने साफ़ और स्पष्ट तौर पर मनोहर पर्रिकर के नाम पर ही उन्हें समर्थन किया था। उस समय इन पार्टियों का कहना था कि हम सिर्फ़ मनोहर पर्रिकर को समर्थन दे रहे हैं, भाजपा को समर्थन नहीं दे रहे। मनोहर पर्रिकर के निधन होने की स्थिति में उनकी जगह किसी दूसरे के नाम पर चर्चा होती है तो ये दोनों पार्टियां अपना समर्थन वापस ले सकती हैं। इसके बाद अगर निर्दलीय विधायक और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी कांग्रेस को अपना समर्थन दे देती हैं तो वो सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच जाएगी।

ये है विधायकों का गणित

बीजेपी के कुल विधायकों की संख्या 11 रह गई है। इनमें से एक सदन के अध्यक्ष हैं। यानी नंबर संख्या के लिहाज़ से बीजेपी विधायकों की संख्या महज 10 है। इनमें अगर बीजेपी के सहयोगियों को भी मिला लें तो उनकी संख्या 18 तक ही पहुंचती है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के 16 विधायक हैं। इसके अलावा उनके समर्थक 1 निर्दलीय और 1 नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के विधायक को मिलाकर भी उनकी कुल संख्या 18 ही बनती है। ऐसे हालात में दोनों ही खेमों में बराबर संख्या बनती हुई दिख रही है।

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