MP By Election: संघ के संकेत हमारे भरोसे न रहे भाजपा

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अगर यह अटकलें हैं तो आरएसएस के पास कुछ मैदानी हकीकत पहले से है मौजूद

MP Bye Election
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ-फ़ाइल फ़ोटो

भोपाल। मध्य प्रदेश में विधान सभा के 28 उपचुनाव को लेकर कांग्रेस भाजपा के साथ बहुजन समाज पार्टी भी सक्रिय हो गयी है। चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अहम रोल अदा कर सकता है लेकिन उपचुनाव (MP Bye Election) में वह तटस्थ भूमिका अपनाये हुए हैं। सबको पता है यह उपचुनाव मामूली नही है। नेताओं के साथ राज्य सरकार के भाग्य का भी फैसला होगा। 16 अक्टूबर को नामांकन पत्र दाखिल होने के साथ 19 अक्टूबर को नाम वापसी के साथ पार्टियों में बगावत का सीन भी साफ हो जाएगा। संघ की चौखट पर भाजपा के बागी दस्तक दे रहे हैं। मगर अभी संघ परिवार ने इस मामले में हाथ खड़े कर दिए है और कहा है कि यह भाजपा का मामला है वह इसे अपने हिसाब से सुलझाए।

सिंधिया के पक्ष में कौन!

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पहली बार भाजपा कार्यालय पहुंचने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और मंत्री गोपाल भार्गव, साथ में हैं प्रभात झा

राज्य की 28 सीटों में 16 ग्वालियर- चम्बल क्षेत्र से हैं। यहां सिंधिया राजघराने का असर है। आगामी तीन नवंबर को मतदान, एक हफ्ते बाद 10 नवंबर को नतीजे घोषित हो जाएंगे। भाजपा सिंधिया घराने के प्रभाव वाली सीटों छोड़कर शेष भारत की सीटों पर ज़्यादा फोकस करेगी। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर सभाएं व संपर्क करेंगे। लेकिन प्रचार के दौरान भाजपा की गुटबाजी और नतीजे प्रदेश में भविष्य राजनीति तय करेंगे। एक बात साफ है कि राजनीतिक खींचतान में भाजपा हाईकमान और संघ परिवार सिंधिया के पक्ष में ज्यादा है। उनका मानना है कि प्रशासनिक दक्षता सिंधिया में ज्यादा है और यही बात उनके नम्बर बढ़ती है। संघ और भाजपा हाईकमान का मानना है कि मध्य प्रदेश में सरकार सिंधिया की वजह से है। इसलिए उनकी अनदेखी नही की जा सकती। लेकिन भाजपा और सरकार में बैठे बहुत से नेता इससे सहमत नही लगते। सब किसी तरह चुनाव निपट जाएं इसके लिए राम राम जप रहे हैं।

अपनों को अवसर मिलेगा!

Bhopal crime
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह-File Photo

चुनाव में जातिवाद का जहर घुला तो फिर बसपा को लाभ और भाजपा-कांग्रेस को घाटा उठाना पड़ सकता है। बसपा और निर्दलीय विधायकों का मन भी कहता है कि उपचुनाव में किसी को बहुमत न मिले तो उनकी खूब पूछ परख होगी। कमोबेश यही सुर भाजपा नेताओं के भी है। यही सोच भाजपा की नींद उड़ाए हुए है। ऐसे हालात में प्रदेश भाजपा सिंधिया घराने के असर की16 सीटों को छोड़ शेष एक दर्जन सीटों पर ज्यादा ध्यान लगाने की रणनीति पर विचार कर रहा है। गुटबाजी के गणित से इसके दो फायदे अगर सिंधिया कमजोर हुए तो जाहिर है चुनाव के बाद प्रदेश भाजपा संगठन और सरकार में उनका दखल कम हो जाएगा साथ ही भाजपा के विधायकों को सरकार में शामिल करने के अवसर भी बढ़ जाएंगे। ऐसे में सिंधिया की वजह से सरकार में आने का भाजपा को सुख मिला उपचुनाव में सिंधिया के कमजोर होने से भाजपा के नेता सिंधिया के हस्तक्षेप से भी बच जाएंगे। इसे कहते हैं दोनों हाथ में लड्डू का सोच। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कच्ची गोटिया नहीं खेली है उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष प्रकाश नड्डा के साथ संघ परिवार को भी अपने विश्वास में ले रखा है।

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यह है आरएसएस का गणित!

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भोपाल में प्रदेश भाजपा मुख्यालय

यही वजह है कि सिंधिया समर्थक विधायक मंत्रियों के उपचुनाव में यदि हार होती है संघ और भाजपा के दिग्गज इसके लिए अपने स्थानीय नेताओं को भी जिम्मेदार मान सकते हैं। बस यही बात प्रदेश भाजपा के नेताओं को चिंता में डाले हुए है। इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिंधिया के साथ तालमेल बनाए हुए है। सरकारी स्तर पर उपचुनाव से जुड़े हर मुद्दे पर सरकार ने सिंधिया की बात को हर हाल में तवज्जो दी है। लेकिन जहां तक जमीनी कार्यकर्ता और बागियों को मनाने के साथ सक्रिय करने का सवाल है उसमें संगठन की गति उम्मीद के मुताबिक नहीं है। इस बात की सूचना संघ पदाधिकारियों के पास भी आ रही है। हालात चिंताजनक लगते हैं।

संघ परिवार के गणित में भी भाजपा 28 में से 15 से 18 सीट जीतने की स्थिति में है। यदि बागियों को मना लिया जाए तो आंकड़ा बढ़कर 20 तक भी पहुंच सकता है। संघ से संकेत मिले हैं कि अगर भाजपा सरकार बनाए रखने तक लगभग 118-120 विधायक अब तक सिमट जाती है तो फिर मध्यावधि चुनाव की आशंका बलवती हो जाएगी। दरअसल भाजपा के भी 8-10 असंतुष्ट विधायक बिक गए या बागी हो गए तो फिर सरकार का टिकना मुश्किल हो जाएगा। कुल मिलाकर भाजपा के सामने संकट ज्यादा है। भाजपा सरकार निर्धारित कार्यकाल पूरा करें इसके लिए आवश्यक है कि उसके विधायकों की संख्या सदन में 125 से अधिक होनी चाहिए। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को समझा रही है यदि सरकार मजबूती के साथ बनी रहती है तो शासन राजनीति और समाज में पूछ परख बनी रहेगी। वरना कांग्रेस सरकार में उनकी जैसी दो कौड़ी की इज्जत थी उसके लिए तैयार रहना होगा। देखते यह बात कितनी कारगर साबित होती है।

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कांग्रेस में खुशी ज्यादा…

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दिग्विजय सिंह, सांसद, फाइल फोटो

उपचुनाव में भाजपा के हालात को देखते हुए कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ज्यादा है। असल में ग्वालियर चंबल क्षेत्र में बिकाऊ और टिकाऊ के साथ जातिगत राजनीति से कांग्रेस लाभ उठाना चाहती है। इसकी काट के लिए खबर यह है कि भाजपा ने बहुजन समाज पार्टी को एक्टिव कर रखा है। दूसरी तरफ देखे तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस नेतृत्व उम्रदराज होने के साथ-साथ कमजोर है। इसमें 75 साल के कमलनाथ 73 साल के दिग्विजय सिंह चुनावी कमान संभाले हैं। सेकंड लाइन में जीतू पटवारी, उमंग सिंगार, जयवर्धन सिंह और नकुल नाथ कभी नाम है। जबकि भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा का मजबूत संगठन और उसके “देव दुर्लभ” कार्यकर्ता की फौज। इसमें ग्वालियर चंबल के दिग्गज नेता वरिष्ठ मंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रदेश भाजपा के युवा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का नेतृत्व बहुत हद तक दाव पर भी है। मुख्यमंत्री के दावेदारों में अपना नाम गंभीरता से चलाए हुए थे। उपचुनाव में उन्हें यह साबित करने का अवसर है कि वे अपनी विधानसभा के अलावा पूरे प्रदेश में पार्टी को जिताने का दम रखते हैं।

तोमर की यह चतुराई!

इसी तरह चंबल से चालू रखने वाले विष्णु दत्त शर्मा ठेट बुंदेलखंड कि खजुराहो सीट से जाकर पांच लाख से अधिक वोटों की रिकॉर्ड जीत दर्ज कराने के साथ अपने गृह क्षेत्र में भी पार्टी को जिताने का माद्दा रखते हैं। ग्वालियर चंबल में नेताओं की भरमार को देखते हुए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर नई दिल्ली में कामकाज के दबाव के बीच बड़ी चतुराई से अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगने से बचा रखा है। भाजपा के इस गणित ने कांग्रेस के घाघ नेताओं की बांछे खिला दी है।

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राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

यह लेख वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह का हैं, उन्होंने द क्राइम इन्फो को प्रकाशित करने की अनुमति दी है।

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