Bhopal Gas Tragedy News: हम राष्ट्रभक्ति की बात करते हैं नोटिस नहीं दे पाए: गैस पीड़ित संगठन

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Bhopal Gas Tragedy News: सात साल में जिला कोर्ट ने डाउ केमिकल्स को भेजे थे छह बार समन, भारतीय उच्चायुक्त पर उसे दबाने का आरोप

Bhopal Gas Tragedy News
गैस पीड़ित संगठन के नेता पत्रकार वार्ता में 37 साल में सरकारों के रवैये को उजागर करते हुए।

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy News) की 37वीं बरसी है। इसको लेकर गैस पीड़ित संगठनों की तरफ से हर दिन एक सवाल पूछकर धरना दिया जा रहा है। बुधवार को संगठन के नेता मीडिया के सामने आए। संगठनों का आरोप है कि दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकार आज तक उनके हक और अधिकार से वंचित किए हुए है। देश में राष्ट्रवाद की बात की जाती है। फिर जिला अदालत से भेजे गए नोटिस को केंद्र सरकार अब तक तामिल क्यों नहीं करा पा रही।

सुशांत केस में सरकार ने मांगी मदद

यह जानकारी देते हुए रचना ढ़ींगरा (Rachna Dhingara) ने कहा कि 2014 से लगातार छह बार भोपाल जिला अदालत ने डाउ केमिकल्स कंपनी को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस सीबीआई के जरिए केंद्र सरकार फिर वहां से अमेरिका उच्चायुक्त को भेजा जाना है। ढ़ींगरा ने आरोप लगाते हुए कहा कि यह नोटिस तो दूर की बात है सरकार उसी डाउ केमिकल कंपनी को भारत में निवेश के लिए मंच उपलब्ध करा रही है। उसके शेयर भारतीय बाजार में उछल रहे हैं। ढ़ींगरा ने व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े करते हुए बताया कि जब सुशांत सिंह केस में उसके मोबाइल डाटा रिट्रीव करने के लिए यूएस डिपार्टमेंट से मदद ली जा सकती है तो गैस कांड के दोषी को समन क्यों नहीं दिया जा सकता। ढ़ींगरा ने कहा कि हम चाहते है कि दुनिया को पता चले कि विश्व के सबसे भीषण औद्योगिक हादसे के 37 साल बाद भी भोपाल गैस पीड़ितों को न्याय से वंचित रखा गया है।

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सरकार ने रिसर्च बंद कराए

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एमपी सरकार की पेंशन समेत दूसरी योजनाओं की मैदानी सच्चाई बताते गैस कांड के शिकार आम नागरिक।

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष और गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार विजेता, रशीदा बी ने कहा किसी भोपाली को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिला है और आज तक कोई भी अपराधी एक मिनट के लिए भी जेल नहीं गया। इसकी वजह हमारी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारें और अमरीकी कंपनियों के बीच सांठगांठ है। गैस पीड़ितों के लिए अस्पतालों में भीड़, संभावित हानिकारक दवाओं का बेहिसाब और अंधांधुंध इस्तेमाल और मरीजों की लाचारी वैसी ही बनी हुई है, जैसी हादसे वाले दिन थी। सरकार ने हादसे के स्वास्थ्य पर प्रभाव के सभी शोध बंद कर दिए हैं। यूका के पास जहर के शरीर में होने वाले इफेक्ट की जानकारी है। यह जानकारी सरकार लेने का प्रयास ही नहीं कर रही।

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