Ayodhya Verdict : मस्जिद के लिए दूसरी जमीन मंजूर नहीं, पुनर्विचार याचिका दायर करेगा लॉ बोर्ड

Share

सुन्नी वक्फ बोर्ड को फैसला मंजूर लेकिन एक महीने के भीतर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

नई दिल्ली। अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले (Ayodhya Verdict) पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) समीक्षा याचिका (Review Petition) दायर करेगा। मुस्लिम लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी (Jafaryab Jilani) ने कहा कि एक महीने के अंदर समीक्षा याचिका दायर की जाएगी। लॉ बोर्ड ने कहा कि मस्जिद के अलावा वो किसी अन्य जमीन को स्वीकार नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर रामलला विराजमान का मालिकाना हक होने का फैसला दिया है। साथ ही मस्जिद के लिए अयोध्या में ही प्रमुख जगह 5 एकड़ जमीन दिए जाने का आदेश सुनाया है। लेकिन ये फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मंजूर नहीं है। यह जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) को दी गई है, बोर्ड का तो कहना है कि वो अदालत के फैसले को चुनौती नहीं देगा। इस फैसले पर वक्फ बोर्ड का कहना है कि वह “एक बंद अध्याय को नहीं खोलना चाहता” क्योंकि इस तरह के कदम से तनाव पैदा होगा। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो अयोध्या मामले में पक्षकार भी नहीं था, उसने कानूनी रूप से मदद की थी, अब मुस्लिम पक्ष की तरफ से समीक्षा याचिका दायर करना चाहता है।

मामले में एक प्रमुख याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा-आई हिंद पहले ही कह चुका है कि वह एक समीक्षा याचिका के पक्ष में है। लॉ बोर्ड ने कहा कि जमीयत समेत तीन मुकदमों की पहचान की जा चुकी है, जिन पर समीक्षा याचिका दायर करेंगे। हालांकि, वक्फ बोर्ड को एक मस्जिद के लिए किसी भी भूमि को स्वीकार करने के लिए सूचित करना बाकी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि शरीयत कानूनों के तहत  मस्जिद के लिए पैसे या जमीन का लेनदेन नहीं किया जा सकता।

यह भी पढ़ें:   J&K : गुलाम नबी आजाद को दी अनुमति, जरूरत पड़ी तो सीजेआई भी जाएंगे कश्मीर

9 नवंबर को फैसले के बाद, कानून बोर्ड के सदस्य और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा था कि वे फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। “हमें लगता है कि यह अन्यायपूर्ण है … हम इस न्याय पर विचार नहीं कर सकते,”। लेकिन एक साक्षात्कार में, सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष, ज़फर फारूकी ने कहा था कि “पहले दिन से हमारा स्पष्ट रुख था कि हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करेंगे वो कुछ भी हो”।”दूसरा, इस मुद्दे ने वर्षों में हमारे समाज में एक गहरी विभाजन पैदा किया है। एक समीक्षा के लिए जाने का मतलब हो सकता है फिर से वातावरण को कमजोर करना,”

Don`t copy text!