Tribal Community Culture: गाय का खून पीकर बनते है हीरो

Share

Tribal Community Culture: कई महीनों की तैयारियों के बाद प्रतियोगिता जीतने पर छह महीने तक बिना शारीरिक संबंध बनाकर बिताने होते है झोपड़ी में दिन

Tribal Community Culture
बोदी जनजाति के पुरूष जो प्रतियोगिता जीतने के लिए यह तकनीक अपनाते हैं।

दिल्ली। बात एक विचित्र जनजाति (Tribal Community Culture) की हो रही है। जिसमें गाय को पूजा जाता है। लेकिन, जनजाति की एक परंपरा के लिए उसी देव तुल्य गौ माता का वे खून पीते हैं। इसे पीने के बाद इस जनजाति के लोग एक प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। यह आयोजन एक साल में दो बार किया जाता है। विजेता को छह महीने तक एक झोपड़ी में रखा जाता है। उसे गांव की महिलाएं प्रतिदिन अच्छे—अच्छे पकवान भी परोसती है। इस दौरान विजेता छह महीने तक किसी तरह का शारीरिक संबंध भी नहीं बना सकता। यदि वह इन सभी नियमों में खरा उतरता है तो उसे लाइफटाइम के लिए हीरो का दर्जा मिल जाता है। यह हीरो का दर्जा पाने के लिए गांव का हर बच्चा बचपन से सपना देखता है।

पेट का साइज बढ़ाना सबसे पहली प्राथमिकता

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह परंपरा बोदी जनजाति की है। यह जनजाति आदिवासी होती है। इथियोपिया (Ethiopia Community) में मिलने वाली आदिवासी संस्कृति के यहां करीब 10 हजार लोग हैं। बोदी समाज की परंपरा यह भी है कि वे दहेज में गाय देते हैं। बोदी जाति की भाषा, संस्कृति और परंपरा बिलकुल ही अलग है। इस जनजाति के पुरूष नग्न ही रहते हैं। कमर के नीचे जरूर कपास की पट्टी बांधने का काम करते हैं। दुनिया में पतले होने का क्रेज है लेकिन बोदी जनजाति के लोग मोटा दिखने के लिए प्रतियोगिता आयोजित करते हैं। इसी प्रतियोगिता को जीतने के लिए बोदी जाति के पुरूष गाय का दूध और खून पीते हैं। गाय को समाज के लोग मारते नहीं हैं। बल्कि गाय की नस से खून निकालकर उसका सेवन करते हैं। ऐसा करने के लिए भी साहस चाहिए होता है। कई इसमें पहले ही चरण में हार जाते हैं। गाय का दूध और खून पीने से पेट बाहर निकल आता है। जिसका पेट सबसे ज्यादा बाहर निकला होता है उसे हीरो माना जाता है।

यह भी पढ़ें:   PM Narendra Modi Speech: पीएम मोदी ने बच्चों से मांगी मदद

बलि के बाद खत्म होती है प्रतियोगिता

बोदी जाति में गाय को पूजा जाता है। जब उसका खून निकाला जाता है तो उसका मिट्टी का लेप लगाकर इलाज भी होता है। यह जाति पशुपालन पर ही निर्भर होती है। प्रतियोगिता में अविवाहित पुरूष ही भाग ले सकता है। प्रतियोगिता जीतने के बाद झोपड़ी में छह महीने रहना पड़ता है। मोटापे के लिए कई लोग प्रयास तो करते है, लेकिन वे चल नहीं पाते। प्रतियोगिता के बाद बलि दी जाती है। समारोह संपन्न होने के बाद हीरो वापस अपने समाज में सामान्य जीवन व्यतीत करता है। इसके बाद उसको मोटा होने की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि उसके बाद वह लाइफ टाइम के लिए समाज का हीरो कहलाता है।

Don`t copy text!