TCI Exclusive: पुलिस मुख्यालय ने किया शहीदों का अपमान! RTI के जवाब में कहा- शहीदों से पूछकर देंगे जानकारी

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भोपाल के लाल परेड मैैदान स्थित शहीद स्मारक का चित्र

शहीदों को “पर व्यक्ति” (3rd person) से जुड़ा मामला बताकर झाड़ा पल्ला, दो महीने में भी नहीं दी जानकारी

भोपाल। मध्य प्रदेश के पुलिस मुख्यालय के पास शहीदों की जानकारी नहीं है। विभाग को नहीं पता कि बीते करीब 10 सालों में कानून की रक्षा करते-करते कितने पुलिस अधिकारी और जवान शहीद हो गए। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक जानकारी का मुख्यालय ने बेहद अजीबो-गरीब जवाब दिया है। पुलिस मुख्यालय की ओर से दिए गए जवाब को शहादत का अपमान ही कहा जा सकता है।

द क्राइम इन्फो के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ब्यूरो चीफ केशव राज पांडे ने गृह विभाग से शहीदों के संबंध में जानकारी मांगी थी। गृह विभाग ने आरटीई के तहत जवाब देने की बजाए मामला पुलिस मुख्यालय को ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद पुलिस मुख्यालय ने जवाब देने के बजाय उसे अजीब तर्क देकर टाल दिया। पुलिस मुख्यालय ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 11 के तहत कहा कि

‘यह जानकारी “पर व्यक्ति” (3rd person) से संबंधित है। लिहाजा संबंधित से सहमति प्राप्त होने के बाद ही जानकारी प्रदान की जाएगी।’

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या शहीदों की जानकारी “पर व्यक्ति सूचना” (3rd person) से संबंधित है और पुलिस मुख्यालय किसकी सहमति लेने की बात कर रहा है? क्या पुलिस मुख्यालय शहीदों की सहमति लेकर जानकारी प्रदान करेगा? जो कि अब इस दुनिया में हैं ही नहीं।

बता दें कि केशव राज पांडे ने वर्ष 2010 से मार्च 2019 तक शहीद हुए पुलिस अधिकारी और जवानों की जानकारी गृह विभाग से मांगी थी। विभाग से भी यह जानकारी मांगी गई थी। ये समझ से परे है कि यह “पर व्यक्ति सूचना” से संबंधित कैसे हो गई। जबकि किसे शहीद का दर्जा दिया जाना है, यह सरकार और सिस्टम तय करता है।

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पुलिस मुख्यालय का वह पत्र जो शहीदों की जानकारी मांगने पर दो महीने बाद भेजा गया

जवाब देने में दो महीने लग गए
शहीद जैसे अतिसंवेदनशील और भावनात्मक मुद्दे पर गृह विभाग के बाद पुलिस मुख्यालय का नजरिया बताता है कि पुलिसकर्मियों की शहादत को कितनी गंभीरता से लिया जाता है। गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय के बीच की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है। लेकिन, यह पत्र मुख्यालय पहुंचने और फिर वहां से जवाब देने में पुलिस मुख्यालय को दो महीने लग गए। पुलिस मुख्यालय की लेखा शाखा में एआईजी ने इस संबंध में 23 जुलाई को अपना जवाब दिया। यह जवाब द क्राइम इन्फो कार्यालय को 31 जुलाई को रजिस्टर्ड डाक से प्राप्त हुआ। जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम कहता है कि सूचना एक महीने में दी जाए। यदि संबंधित विभाग से नहीं है तो इसके लिए पांच दिन अतिरिक्त दिए जाते हैं।
क्या है अधिनियम धारा की परिभाषा
पुलिस मुख्यालय ने जिस धारा 11 के तहत जानकारी देने से अपना बचाव किया है उसमें कहा गया है कि तीसरी पार्टी का तात्पर्य आवेदक से भिन्न अन्य व्यक्ति से है। ऐसे लोक प्राधिकरण भी तीसरी पार्टी की परिभाषा में शामिल होंगे, जिनसे सूचना नहीं मांगी गई है। एक अन्य बिंदु में यह भी साफ है कि पर व्यक्ति की वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यवसायिक रहस्यों और बौद्धिक संपदा समेत ऐसी सूचना जिसके प्रकटन से किसी पार्टी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो, को बताने से छूट प्राप्त है। तीसरी पार्टी से संबंधित ऐसी सूचना, जिसे तीसरी पार्टी गोपनीय मानती है, के संबंध में लोक सूचना अधिकारी को निर्णय करना चाहिए। यहां समझ से परे है कि शहीदों के नामों और उनकी सामान्य जानकारी को क्यों गोपनीय रखा जा रहा है।

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शहीदों के नाम का वाचन
प्रदेश में हर साल 21 अक्टूबर को शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दौरान ड्यूटी में दिवंगत पुलिस अफसर और कर्मचारियों के नाम और उनका ब्यौरा बताते हुए उन्हें याद किया जाता है। राजधानी में यह आयोजन शहीद स्मारक पर आयोजित होता है। जिसमें राज्यपाल से लेकर सेवानिवृत्त अफसर तक पुष्पांजलि और पुष्पचक्र अर्पित करते हैं। शोक सभा से लेकर परेड होती है। इन शहीद पुलिसकर्मियों के नाम स्मारक पर भी उकेरे जाते हैं। राजधानी में दूसरा संयोग यह भी है कि यहां करोड़ों रूपए की लागत से शहीद स्मारक भी बनाया गया है।

विशेषज्ञ राय: अफसरों का जवाब हास्यास्पद
सेवानिवृत्त डीजी अरूण गुर्टू ने बताया कि ऑन ड्यूटी असामाजिक तत्व या आतंकी से मुठभेड़ में हुई मृत्यु को शहीद की श्रेणी में लिया जाता है। हालांकि इसमें कई जगह विरोधाभास भी आता है। लेकिन, वास्तविक परिभाषा यही है। उन्होंने बताया कि शहीद की जानकारी कोई सीक्रेसी एक्ट या अन्य व्यक्ति से जुड़ा हुआ विषय नहीं है। यह सार्वजनिक किया जा सकता है। यदि पुलिस मुख्यालय के जिम्मेदार अफसरों ने ऐसा जवाब दिया है तो यह हास्यास्पद श्रेणी में आएगा। मैं चाहता हूं कि आप उस आदेश की कॉपी भी सार्वजनिक करें ताकि लापरवाह अफसर सबक सीख सकें।

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