MP Cop Gossip: एक संभाग में तैनात अफसर लंबे समय से जमे लेकिन कोई चमत्कार अब तक नहीं दिखा सके
सांकेतिक ग्राफिक डिजाइन टीसीआई
भोपाल। मध्यप्रदेश पुलिस विभाग के भीतर ही भीतर बहुत कुछ चल रहा होता है। कुछ बातें सामने आ जाती है लेकिन कुछ दबी ही रह जाती है। उन्हीं बातों का साप्ताहिक कॉलम एमपी कॉप गॉसिप (MP Cop Gossip) हैं। हमारा मकसद व्यवस्था को कम—ज्यादा आंकना नहीं हैं, सिर्फ यह बताना है कि बातें छुपी नहीं रह सकती।
पूरा मामला हजम कर गए थाना प्रभारी
राजधानी के एक टीले पर अपना ठिया जमाकर एक प्रभारी महोदय बैठे हुए हैं। वे काफी चतुर, चालाक और बुद्धिमान व्यक्तित्व के धनी हैं। उनके भीतर एक कला और भी है। वे बड़े से बड़े मामले को पी जाते हैं। उनकी उम्र से आधी नौकरी सिर्फ भोपाल शहर में ही हुई है। उनके हुनर का पुलिस विभाग बखूबी फायदा भी उठा रहा है। पिछले दिनों गोमांस को लेकर एक हिंदू संगठन ने जमकर उत्पात मचाया। संगठन के लोग मांस को जब्त करके भी थाने ले गए। लेकिन, मामले को दबाने में एक्सपर्ट निरीक्षक महोदय ने इस सनसनीखेज मामले को भी दबा दिया। वे जिस विधानसभा में नौकरी करते हैं वह कांग्रेस के दबदबे वाला क्षेत्र है। वहां सत्तारुढ़ संगठन से जुड़े हिंदू कार्यकर्ताओं की नहीं चली। उन्होंने ट्रंप कार्ड चला और मांस को जब्त करके हैदराबाद की लैब में भेज दिया है। वहां से रिपोर्ट मिलने के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया गया है। यह बात सभी जानते हैं कि हैदराबाद से आने वाली रिपोर्ट कब तक भोपाल आती है। तब तक उनकी सेवाएं भी थाने से समाप्त हो सकती है।
राजधानी में वृद्धों के आश्रम बने थाने
भोपाल शहर में पहले योग्यता के आधार पर चुन—चुनकर लाया जाता था। यहां तैनाती की योग्यता के पीछे बड़े मकसद पुलिस विभाग (MP Cop Gossip) में होते थे। फिर वह चलन पुराना हुआ तो अंगदों ने अपना राज जमाया। इस सल्तनत को नवागत डीजीपी ने ढ़हाया और कई मोर्चो से लोगों को बाहर कर दिया। अब उसके बाद नए समीकरण ऐसे बने हैं कि यहां अधिकांश निरीक्षक अपनी सेवानिवृत्ति के अंतिम पड़ाव में हैं। किसी निरीक्षकों को चार महीने तो कोई आठ महीने बाद सेवानिवृत्त होने वाला हैं। इसके अलावा कुछ निरीक्षक अपनी पदोन्नति की बांट जोह रहे थे। ऐसा नहीं है कि यह बात केवल निरीक्षक तक सीमित हैं। इसमें कई सीनियर सब इंस्पेेक्टर भी है जो अपनी सेवाओं के अंतिम दौर में गुजर—बसर कर रहे हैं।
हत्याकांड को ही दबाते रहे अफसर
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शहर के एक अधिकारी को मीडिया में दिखने और बोलने का बहुत शोक हैं। इसके लिए वे कुछ भी कर गुजरते हैं। एक बार तो उन्होंने एक ही गिरोह के दो मामले अलग—अलग थानों में पहुंचाकर अलग—अलग दिनों में पत्रकार वार्ता की थी। यहां तक तो ठीक था लेकिन एक ताजा हत्याकांड के मामले में तो उन्होंने सारी संवेदनाएं ही ताक में रख दी। जबकि प्रकरण में हत्या से जुड़े तीन आरोपियों के मोपेड का नंबर सीसीटीवी फुटेज में आ चुका था। दो घंटे के भीतर ही आरोपियों की पूरी कुंडली उजागर हो चुकी थी। लेकिन, क्या करे जिसे छपने का चस्का लगे तो वह किरकिरी को भी करिश्मा ही समझता है। हत्याकांड को बारह घंटे तक दबाए रखा गया। हालांकि इस प्रकरण में किस्मत ने उनका साथ भी दिया। क्योंकि जिस दिन हत्या हुई उस दिन विधानसभा का अंतिम दिन भी था। यदि वह सदन चलते में उजागर होता तो कांग्रेस सरकार के बाल नोंच लेती। इस भय में भी यह अधिकारी रहे और इसी बहाने वे अपने दूसरे एजेंडे को साबित करने में जुटे रहे।
शहर के एक थाने में तैनात अफसर काफी अरसे से कुर्सी में जमे बैठे हैं। साहब के इलाके में एक थाना कमर्शियल भी है। यहां कॉर्पोरेट क्राइम हर रोज होता है। इसके बावजूद उन्होंने कभी भी कोई अचीवमेंट ही हासिल नहीं किया। यह अधिकारी कंबल ओढ़कर मस्त घी पीने में लगे हैं। मीडिया से दूरी और अफसरों के लिए जी हुजूरी उनका मूल मंत्र हैं। जिधर का भी फोन आ जाए मॉल में खरीददारी से लेकर हर बड़े उत्पाद में वे अफसरों को सोच से ज्यादा छूट दिला देते हैं। इसलिए उनकी अब तक की कई कमजोरियां ढ़की हुई है। लेकिन, अब वे मर्डर में पीछे दुबकने के चलते मीडिया की नजरों में चढ़ गए हैं। खबर हैं कि साहब के एक कारनामे की चर्चित खबर कभी भी आ सकती हैं। हालांकि वह उजागर न हो इसके लिए वे बहुत ही लंबे स्तर पर प्रयास कर रहे हैं।
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